________________
१५४
आचार्य हेमचन्द्र
का वर्णन किया गया है । साथ ही वहाँ यह कहा गया है कि मोक्ष जिस कर्मक्षय से सम्भव है, वह कर्मक्षय आत्मज्ञान से होता है और वह आत्मज्ञान ध्यान से सिद्ध किया जा सकता है। साम्यभाव के बिना ध्यान नहीं और ध्यान के बिना वह स्थिर साम्यभाव भी सम्भव नहीं है। इसलिए ध्यान तथा साम्यभाव दोनो परस्पर एक दूसरे के कारण है। इस प्रकार ध्यान की भूमिका बाँधते हुए ध्यान का स्वरूप व उसके दो भेद-धर्म्य और शुक्ल, निर्दिष्ट किये गये है। तथा धर्म्यध्यान को संस्कृत करने के लिए मैत्री आदि भावनाओं को ध्यान का रसायन बतलाकर उनका भी संक्षेप में स्वरूप दिखलाया गया है। इस प्रकार रत्नत्रयों का सम्यग् वर्णन करने के पश्चात् चतुर्थ प्रकाश से प्रारम्भ में मोक्ष की सुन्दर व्याख्या दी है। यह आत्मा ही चिद्र प है, ध्यानाग्नि में सर्वकर्म भस्मसात होकर आत्मा निरंजन हो जाती है । कषायों को जोतकर जितेन्द्रिय पुरुष को ही मोक्ष मिलता है । इसके बाद काम-क्रोध रूप का वर्णन किया गया है । इन्द्रिय जय तथा मनः शुद्धि पर विशेष जोर दिया गया है । राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करके समत्व प्राप्ति करनी चाहिये । तत्पश्चात् बारह भावनाओं का वर्णन है । तप के दो प्रकारों-बहिस्तप तथा आन्तरतप, का वर्णन किया गया है । ध्यान का वर्णन करते हुए "समत्वमलम्ब्याथ ध्यानं योगी समाश्रयेत्” कहकर गीतोक्त समत्वयोग की ही आचार्य जी ने प्रतिष्ठा की है। ध्यान की सिद्धि के लिए योगी को, जिसने आसन पर विजय प्राप्त करली है, आत्मस्थिति के हेतुभूत किसी तीर्थस्थान अथवा अन्य किसी भी एकान्त, पवित्र स्थान का आश्रय लेना चाहिये। इसके लिए प्रकृत में पर्यंक, वीर, वज्र, कमल भद्र, दण्ड उत्कटिका, गोदोहिका, और कामोत्सर्ग इन आसन विशेषों का निर्देश करके उनके पृथक-पृथक लक्षण भी दिखलाये गये हैं।
पञ्चम प्रकाश में प्राणायाम की प्ररूपणा करते हुए प्राणापानादि वायु-भेदों के साथ पार्थिव, वारुण, वायव्य, और आग्नेय, नामक वायु-मण्डलों तथा उनके प्रवेश, निगमन को लक्ष्य में रखकर उससे सूचित फल की विस्तार से चर्चा की गयी है। योग की आश्चर्य जनक शक्तियों के बारे में भी वर्णन किया गया है। प्राणायाम का ३०० श्लकों में प्ररूपण करने पर भी ज्ञानार्णव के समान ही उसे मोक्ष-प्राप्ति में बाधक कहा गया है । हेमचन्द्र को शुभचन्द्र का इस विषय में ऋणी मानना चाहिये।
६ ठे प्रकाश में परपुरप्रवेश व प्राणायाम को निरर्थक कष्टप्रद बतलाकर उसे मुक्ति-प्राप्ति में बाधक बतलाया है । साथ ही धर्म-ध्यान के लिए मन को