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आचार्य हेमचन्द्र
महत्व अधिक है। यह ग्रन्थ सरल श्लोकों में लिखा गया है। उसके साथ ही बहुत-कुछ परिष्कृत गद्य में लिखित ग्रन्थकार की ही अपनी टीका भी मिलती हैं। विशद् टीका सहित प्रथम चार परिच्छेदों में जैन-दर्शन का विस्तृत और स्पष्ट वर्णन दिया गया है, अन्तिम आठ परिच्छेदों में जैन धर्म के विभिन्न कृत्यों का
और मुनियों के आचारों का प्रतिपादन किया गया है। डॉ. कीथ के मत के अनुसार जैन-धर्म ग्रन्थों के समान इसमें भी अहिंसा की प्रशंसा तथा नारी की निन्दा की गयी है । हेमचन्द्र में उत्कृष्ट कविता लिखने की योग्यता है तो भी इनकी इस कृति 'योग-शास्त्र' को कोई विशिष्ट साहित्यिक महत्व नहीं दिया जा सकता । वास्तव में जैनाचार्य हेमचन्द्र का 'योग-शास्त्र' नीति विषयक उपदेशात्मक काव्य की कोटि में आता है, जो कि आचार प्रधान है तथा धर्म और दर्शन दोनों से प्रभावित है। योग-शास्त्र ने नीति-काव्यों या उपदेश काव्यों की परम्परा को समृद्ध एवं समुन्नत किया है । 'योग-शास्त्र' एक प्रकार से जैन-सम्प्रदाय का विशुद्ध धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रन्थ हैं ।
चालुक्य नरेश कुमारपाल के अनुरोध से हेमचन्द्र ने 'योग-शास्त्र' की रचना की थी। इसमें १२ प्रकाश तथा १०१८ श्लोक हैं । जिस प्रकार दिगम्बर सम्प्रदाय में योगविषयक शुभचन्द्रकृत 'ज्ञाणार्णव' ग्रन्थ अप्रतिम है उसी प्रकार श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हेमचन्द्र का 'योग-शास्त्र'भी एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । १२ प्रकाशों में विभक्त 'योग-शास्त्र' भी 'ज्ञानार्णव' के समान सरल सुबोध संस्कृत में रचा गया है। इसका ६१ पद्यमय ११ वाँ प्रकाश आर्यावृत्त में और १२ वें प्रकाश के प्रारम्भिक ५१ पद्य भी आर्यावृत्त में, ५२-५३ ये दो पद्य क्रम से पृथ्वी व मंदाक्रान्ता वृत्तों में तथा अन्तिम दो पद्य शार्दूल विक्रीड़ित वृत्त में रचे गये हैं । शेष सम्पूर्ण ग्रन्थ अनुष्ठुभ छंद में रचित है। प्रथम चार प्रकाशों पर विस्तृत टीका मिलती है, किन्तु अन्तिम आठ प्रकाशों पर संक्षिप्त टीका मिलती है। सम्भवतः हेमचन्द्र के शिष्यों में से किसी शिष्य ने टीका लिखी हो त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' के भी उद्धरण इसमें मिलते हैं ।
'योग-शास्त्र' को अध्यात्मोपनिषद् भी कहा गया है। गृहस्थ जीवन में आत्म साधना करने की प्रक्रिया का निरूपण इसमें किया गया है । इसमें योग की परिभाषा, व्यायाम, रेचक, कुम्भक, पूरक आदि प्राणायामों तथा आसनों का निरूपण किया गया है । 'योग-शास्त्र' के अध्ययन एवं अभ्यास से मुमुक्षु को आध्यात्मिक प्रगति की प्रेरणा मिलती है। व्यक्ति की अन्तर्मुखी प्रवृत्तियों के उद्घाटन का पूर्ण प्रयास इसमें किया गया है । सम्भवतः कुमारपाल को धर्म का