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दार्शनिक एवं धार्मिक-ग्रन्थ
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दर्शन होता है । उदाहरणार्थ भारतीय प्रमाण-शास्त्र में चार ही प्रमाण माने जाते हैं, किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने प्रमाणों का ऐसा विभाजन किया है कि उसके अन्तर्गत सभी प्रमाण समा जाते हैं । प्रत्यक्ष का तात्विकत्व, 'प्रमाण मीमांसा' की दूसरी विशिष्टता है । स्वतन्त्र आत्मा के आश्रित ज्ञान ही प्रत्यक्ष है। परतन्त्र इन्द्रियजन्य ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है । तत्वचिन्तन में ये विचार नितान्त मौलिक है । हेमचन्द्र की अनुमान के अवयवों की व्यवस्था सर्व साहिणी है, जो भारतीय प्रमाण-शास्त्र को उनकी तीसरी देन है । वस्तु मात्र परिणामी नित्य कहकर द्रव्य पर्याय की व्यापक दृष्टि का परिचय जैन-परम्परा की ही देन है। आत्म विषयक जैन-चिन्तन में परमात्म-शक्ति का स्थान है, तथैव दोष निर्वाणार्थ प्रयत्न का पूरा अवकाश भी है-यह 'प्रमाण मीमांसा' की अन्यतम विशिष्टता है। 'न्याय के अनुसार शरीर ग्रस्त आत्मा के दुःखों का पूर्ण विनाश सम्भव नही है । अन्त में 'प्रमाण मीमांसा में जीव-सर्वज्ञवाद का प्रभावपूर्ण समर्थन कर जीवमात्र के लिए अमृतमार्ग खुला कर दिया है । सर्वज्ञत्व समर्थक युक्तियों का सङ्ग्रह जैन प्रमाण-शास्त्र में तथा 'प्रमाण मीमांसा' में ही मिलता है।
इस प्रकार भारतीय प्रमाण-शास्त्र में हेमचन्द्र की 'प्रमाण मीमांसा' का स्थान अद्वितीय है, जो भारतीय प्रमाण-शास्त्र के विकास में अपूर्व योगदान देता है। 'प्रमाण मीमांसा' के कारण प्रमाण शास्त्र और अधिक व्यापक बन गया है । सम्प्रदायातीत विचारों के प्रचार में तथा प्रसार में 'प्रमाण मीमांसा' अपूर्व सहायता कर सकती है । 'प्रमाण मीमांसा' से दर्शन-जगत में तथा तर्क-साहित्य में परमतसहिष्णुता का प्रसार हुआ है, जो पोषक वातावरण के लिए अत्यन्त आवश्यक है । सम्प्रदाय वृद्धयर्थ लिखा गया ग्रन्थ सम्प्रदायातीत बन गया, यह 'प्रमाण मीमांसा' की अपूर्व विशेषता है । अतः प्रमाण मीमांसा' से न केवल जैन दर्शन का अपितु सम्पूर्ण भारतीय दर्शन-शास्त्र के गौरव में वृद्धि हुई
भारतीय दर्शन पाश्चात्य दर्शनों की भांति केवल तत्वों की मीमांसा ही नहीं करता है, अपितु आचार-शास्त्र, प्रमाण-शास्त्र, क्रिया-शास्त्र, मोक्ष-शास्त्र, आदि सभी विषयों को अपने में समेट कर चलता है। इस दृष्टि से आचार्य हेमचन्द्र का दूसरा धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रन्थ 'योग-शास्त्र' भी द्रष्टव्य, विचारणीय एवं चिन्तनीय है।
___ योग शास्त्र- आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र पर बड़ा ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है । इसकी शैली पतञ्जलि के 'योग-सूत्र' के अनुसार ही है, किन्तु विषय और वर्णन क्रम में मौलिकता एवं भिन्नता है। इस दृष्टि से 'योग-शास्त्र' का