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आचार्य हेमचन्द्र
श्रीधर, अक्षपाद्, वात्स्यायन, उद्योतकर, जयन्त, वाचस्पति मिश्र, शबर, प्रभाकर, कुमारिल, आदि विविध वैदिक परम्पराओं के प्रसिद्ध विद्वानों की सब कृतियाँ प्रायः इनके अध्ययन की विषय रहीं । चार्वाक् जयराशि भट्ट का " तत्वोपप्लव” भी इनकी दृष्टि के बाहर नहीं था । आचार्य हेमचन्द्र की भाषा तथा निरूपण शैली पर धर्मकीर्ति, धर्मोत्तर, अर्चंट, भासर्वज्ञ, वात्स्यायन, जयन्त, वाचस्पति मिश्र, कुमारिल, आदि का ही आकर्षक प्रभाव पड़ा है । 'प्रमाण मीमांसा' ऐतिहासिक दृष्टि से जैन तर्क साहित्य में तथा भारतीय दर्शन साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है ।
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भारतीय प्रमाण - शास्त्र में 'प्रमाण मीमांसा' का विशिष्ट स्थान है । भारतीय प्रमाण - शास्त्र न्याय-दर्शन के अन्तर्गत आता है, जिसके प्रर्वतक महर्षि गौतम माने जाते हैं । न्याय - दर्शन का मूल ग्रन्थ गौतम का न्याय सूत्र है । इसके बाद न्याय - भाष्य के अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं, जैसे वात्सायायन का 'न्यायभाष्य', उद्योतकर का 'न्यायवार्तिक', वाचस्पति की 'न्यायवार्तिक तात्पर्य टीका', उदयन की 'न्यायवार्तिक तात्पर्यं परिशुद्धि' तथा ' कुसुमांजलि' जयन्त की 'न्याय मञ्जरी' आदि । इनमें स्वमतमण्डन तथा परमतरखण्डन विशेष रूप से विद्यमान है | नव्य न्याय का आरम्भ गंगेश की 'तत्वचिन्तामणि' से हुआ है । नव्यन्याय में तर्कविज्ञान अथवा प्रमाण - शास्त्र सम्बन्धी विषयों का विशद् विवेचन हैं । " प्रमाणैरर्थ परीक्षणं न्याय:” फिर भी इसमें १६ पदार्थो का परीक्षा पूर्वक विवेचन होता है, १. प्रमाण, २. प्रमेय, ३. संशय, ४. प्रयोजन, ५. दृष्टान्त, ६. सिद्धान्त, ७. अवयव, ८. तर्क, ६ निर्णय, १०. वाद, ११. जल्प, १२. वितण्डा, १३. हेत्वाभास, १४. छल, १५. जाति और १६. निग्रहस्थान ।
आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी 'प्रमाण मीमांसा' में इन सभी पदार्थों पर प्रकाश डालते हुए भी भारतीय प्रमाण शास्त्र को कुछ मौलिक एवं नवीन विचार भेंट किये है, जो जैनाचार्यों की भी भारतीय प्रमाण शास्त्र को अपूर्व देन कही जा सकती है ! सबसे प्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ देन 'अनेकान्त-वाद' है । 'प्रमाण मीमांसा' में 'अनेकान्तवाद' की विशद चर्चा कर हेमचन्द्र ने प्रमाण - शास्त्र को समन्य की और अग्रसर किया है। इस प्रकार दर्शन शास्त्र में अधिक से अधिक व्यापक दृष्टिकोण को अपनाने के लिए उन्होने प्रेरित किया है। इससे सर्वधर्मसहिष्णुत्व अथवा परमतसहिष्णुत्व की भावना को बल मिला है । भारतीय दर्शन, जो अधिकांश में हिन्दू दर्शन है, परमतसहिष्णु है । यह सहिष्णुता सम्भवतः जैनदर्शन से सम्पर्क के कारण ही है । प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टि की इस व्यापकता का