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दार्शनिक एवं धार्मिक-ग्रन्थ
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मात्र अखण्ड अर्थ का दर्शन सङ्ग्रह नय है । (२) गुण-धर्मकृत भैदों की और झुकने वाला विश्व का दर्शन व्यवहार नय कहलाता है। (३) अतीत अनागत को 'सत्' शब्द से हटाने वाला, वर्तमान भेद गामी दर्शन ऋजुसूत्र नय कहलाता है। (४) सभी शब्दों को अव्युत्पन्न मानना-उनका अर्थ भेद का दर्शन 'शब्दनय' या साम्प्रत नय हैं । (५) प्रत्येक शब्द को व्युत्पत्ति सिद्ध मानने वाला दर्शन समभिरूढ़नय कहलाता है । (६) एक ही व्युत्पत्ति से फलित होने वाले अर्थभद एवं भूत नय कहलाता हैं । (७) देश, रूढ़ि के अनुसार भेदगामी, अभेदगामी, सभी विचारों का समावेश नैगम नय कहलाता हैं । प्रायः प्रत्येक दृष्टिकोण एक नय ही है । नयरूप आधार-स्तम्भों के अपरिमित होने के कारण विश्व का पूर्ण दर्शन अनेकान्त भी निस्सीम है।
सप्तभंगी का आधार नयवाद है और उसका ध्येय समन्वय है । दर्शनों का समन्वय बतलाने की दृष्टि से उनके विषयभूत भाव अभावात्मक दोनों अंशों को लेकर उन पर सम्भावित वाक्य भंग बनाये जाते है । वही सप्तभंगी है । इस तरह नयवाद और भंगवाद अनेकान्त दृष्टि के क्षेत्र में आप ही आप फलित हो जाते हैं । समन्वय के आग्रह में जैन तार्किकों ने अनेकान्त, नय और सप्तभंगीवाद का बिलकुल स्वतन्त्र और व्यवस्थित शास्त्र निर्माण किया। अनेकान्त दृष्टि और उस शास्त्र निर्माण के पीछे जो अखण्ड और सजीव सर्वांश सत्य को अपनाने की भावना जैन-परम्परा में रही और जो प्रमाण-शास्त्र में अवतीर्ण हुई उसमें जीवन के समग्र क्षेत्रों में सफल उपयोग होने की पूर्ण योजना होने के कारण ही उसे भारतीय प्रमाण-शास्त्र को जैनाचार्य की अपूर्व देन कहना अनुपयुक्त नहीं है। भारतीय दर्शन को हेमचन्द्र की देन - 'प्रमाण मीमांसा' में हेमचन्द्र ने पूर्ववर्ती आगमिक तार्किक, सभी जैन मन्तव्यों को विचार व मनन से पचाकर अपने ढंग की विशद् अनुरुक्त, सूत्र-शैली तथा सर्व सङग्राहिणी विशद्तम स्वोपज्ञवृत्ति में उसे सन्निविष्ट किया। नियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य तथा तत्वार्थ जैसे आगमिक ग्रन्थ तथा सिद्धसेन, समन्तभद्र,अकलक,माणिक्य नन्दी,विद्यानन्द की प्रायः समस्त कृतियां 'प्रमाण मीमांसा' की उपादान सामग्री बनी हैं । प्रभाचन्द के 'मार्तण्ड' का भी इसमें पूरा प्रभाव है । अनन्तवीर्य की 'प्रमेयरत्नमाला' का भी इसमें विशेष उपयोग हुआ है । वादी देवसूरि की कृतिका भी उपयोग स्पष्ट है। फिर भी प्रमाण मीमांसा' में अकलंक और माणिक्य नन्दी का ही मार्गानुगमन प्रधानतया देखा जाता है । दिङ्नाग, धर्मकीति, धर्मोत्तर, अर्चट शान्त रक्षित आदि बौद्ध तार्किक भी इनके अध्ययन के विषय रहे हैं। कणाद, भासर्वज्ञ, व्योमशिव,