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दार्शनिक एवं धार्मिक ग्रन्थ
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एक अन्यतम विशेषता है। आचार्य जी अनुसार हर फोई अधिकारी व्यक्ति सर्वज्ञ बनने की शक्ति रखता है । उनके अनुसार जैन पक्ष निरपवादरूप से सर्वज्ञवादी हो रहा है, जैसा कि न बौद्ध परम्परा में हुआ है, और न वैदिक परम्परा में । इस कारण से काल्पनिक, अकाल्पनिक, मिश्रित यावत् सर्वज्ञत्व समर्थक युक्तियों का सङ्ग्रह अकेले जैन प्रमाण- शास्त्र में ही मिलता है ।
जैन दर्शन के अनुसार ही आचार्य हेमचन्द्र पर्यायार्थिक और द्रव्यार्थिक दोनों दृष्टियों को सापेक्ष भाव से तुल्यबल और समान सत्य मानते हैं । द्रव्य के बीच विश्लेषण करते-करते अन्त में सूक्ष्मतम पर्यायों के विश्लेषण तक वे सही पहुँचते हैं पर वे पर्यायों को वास्तविक मानकर भी द्रव्य की वास्तविकता का परित्याग बौद्ध दर्शन की तरह नहीं करते । पर्यायों और द्रव्यों का समन्वय करते-करते एक सत् तत्व तक वे पहुँचते हैं । फिर भी वे ब्रह्मवादी की तरह द्रव्य-भेदों और पर्यायों की वास्तविकता का परित्याग नहीं करते । जैन धर्म में बौद्ध परम्परा की तरह न तो आत्यन्तिक विश्लेषण हुआ और न वेदान्त की तरह आत्यन्तिक समन्वय । इसी कारण से जैन दृष्टि में अपरिवर्तिष्णुता आज तक रही है । उसका वास्तववादित्व स्वरूप स्थिर रहा ।
'प्रमाण मीमांसा' में आचार्य हेमचन्द्र ने अनेकान्तवाद तथा नयवाद का शास्त्रीय निरूपण प्रस्तुत किया है जो जैनाचार्यों की भारतीय प्रमाण - शास्त्र को विशिष्ट देन है । विश्व के अधिकतम वाद अनेकान्त दृष्टि से शान्त किये जा सकते हैं । अनेकान्त दृष्टि के द्वारा जैनाचार्यों ने देखा कि प्रत्येक सयुक्तिकवाद अमुक-अमुक दृष्टि से अमुक-अमुक सीमा तक सत्य है । प्रत्येक वाद को उसी की विचार सरणी से उसी की विषय सीमा तक परीक्षित किया जाय और इस परीक्षण में वह ठीक निकले तो उसे सत्य का एक भाग मानकर, ऐसे सब सत्यांश मणियों को एक पूर्ण सत्य रूप विचार - सूत्र में पिरोकर अविरोधी माला बनायी जाय । इस विचार ने जैनाचार्यों को अनेकान्त दृष्टि के आधार पर तत्कालीन सब वादों का समन्वय करने की ओर प्रेरित किया । आज भी अनेक वादों में उचित समन्वय यह अनेकान्त दृष्टि कर सकती है । समन्वय मात्र अथवा विश्लेषण मात्र के अवान्तर विचार - सरणियों के कारण अनेक तत्वों पर अनेक विरोधी वाद आप ही आप खड़े हो जाते हैं । उन सबका समाधान अने
तवाद से ही होता है । सभी वाद विरोध की शान्ति के लिए अनेकान्तवाद कुञ्जी है | आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार प्रतीति अभेदगामिनी हो या भेदगामिनी किन्तु सभी वास्तविक हैं। अभेद और भेद की प्रतीतियाँ विरुद्ध इसी से जान