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________________ आचार्य हेमचन्द्र अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । देशी शब्दों के सम्बन्ध की सीमाओं का कोशकार ने बड़ी सावधानी से पालन किया है, जिसका कुछ अनुमान हमें उनकी स्वयं बनायी हुई टीका के अवलोकन से होता है । यथा - आरम्भ में ही अज्ज शब्द ग्रहण किया है उसका प्रयोग 'जिन' के अर्थ में बतलाया है । टीका में प्रश्न उठाया है कि अज्ज तो स्वामी का पर्यायवाची आर्य शब्द से सिद्ध होता । इसका उत्तर उन्होंने यह दिया है कि उसे यहां ग्रन्थ के आदि में मंगलवाची समझ कर ग्रहण कर लिया है । १८ वीं गाथा में अविणयवर शब्द जार के अर्थ में ग्रहण किया गया है । टीका में कहा है। इस शब्द की व्युत्पत्ति अविनय वर से होते हुए भी संस्कृत में उसका यह अर्थ प्रसिद्ध नहीं है, और इसलिए उसे यहाँ देशी माना गया है । ६७ वीं गाथा में आरणाल का अर्थ कमल बतलाया गया है, टीका में कहा गया है कि उसका वाचिक अर्थ यहाँ इसलिये नहीं ग्रहण किया गया क्योंकि वह संस्कृतोद्भव है । 'आसियअ' लोहे के घड़े के अर्थ में बतलाकर टीका में कहा है कि कुछ लोग इसे अयस् से उत्पन्न आयसिक का अपभ्रंश रूप भी मानते हैं । उनको संस्कृत टीका में इस प्रकार से शब्दों के स्पष्टीकरण व विवेचन के अतिरिक्त गाथाओं के द्वारा देशी शब्दों के प्रयोग के उदाहरण भी दिये हैं । ऐसी गाथायें ६३४ पायी जाती हैं । १३८ पूर्व ग्रन्थों के समान इस ग्रन्थ में भी हेमचन्द्र ने पूर्व लेखकों का समुचित उपयोग किया है। देशी नाममाला में उन्होंने २० ग्रन्थ-कर्ताओं का एवं दो कोशों का उल्लेख किया है । इन ग्रन्थ-कर्ताओं में एक नाम अवन्ति सुन्दरी का है । सम्भवतः यह पण्डित राजशेखर की पत्नी होगी जिन्हें राजशेखर ने अपनी 'काव्यमीमांसा' में एक अधिकारिणी के रूप में दिखाया है। हेमचन्द्र ने देशी नाममाला में धनपाल, देवराज, गोपाल, द्रोण, अभिमान चिह्न, पादलिप्ताचार्य, शीलाङ्क नामक कोशकारों का उल्लेख किया है । धनपाल की 'पाइयलच्छी नाममाला' उपलब्ध है । ४- निघण्टु - अभिधान चिन्तामणि कोश, अनेकार्थं संग्रह, देशी नाममाला सम्पादन करने के पश्चात् अन्त में आचार्य हेमचन्द्र ने 'निघण्टुशेष' नामक वनस्पति कोश की रचना की । यह उनके प्रारम्भिक श्लोक से विदित होता है" । यह वनौषधि का एक कोश है । निघण्टु में भी ६ काण्ड हैं तथा ३६६ श्लोक हैं । इनमें सभी वनस्पतियों के नाम दिये गये हैं । इसके वृक्ष, गुल्म, लता, शाक, तृण और धान्य ६ काण्ड हैं । वैद्यक शास्त्र के लिए भी इस कोश की अत्यधिक उपयोगिता है । काण्ड विवरण निम्न अनुसार है १ – निघण्टुशेष - प्रारम्भिक श्लोक
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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