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________________ हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ १३७ आधुनिक भाषा-शब्दों से साम्य देशी नाममाला का महत्व भाषा-विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारत की प्रान्तीय भाषाओं पर देशी नाममाला से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। कोश में ऐसे अनेक शब्द सङ्ग्रहीत हैं जिनसे मराठी, कन्नड़, गुजराती, अवधी, ब्रजभाषा और भोजपुरी के शब्दों की व्युत्पत्ति सिध्द की जा सकती है । उदाहरणार्थ-अम्मा (१५) हिन्दी की विभिन्न ग्रामीण बोलियों में यह इसी अर्थ में प्रयुक्त है। चुल्लीह उल्लि-उदाणा (१८७) भोजपुरी, राजस्थानी, ब्रजभाषा और अवधी में चूल्हा, गुजराती में चूलो, बुन्देली में चूलौ और खड़ी बोली में चूल्हा, ओडढर्ण उत्तरयिम् (१।१५५) राजस्थानी-औढ़नी ब्रजभाषा, अवधी, गुजराती-ओढ़नी । कटारी क्षुरिका-(२।४) हिन्दी की सभी ग्रामीण बोलियों में कटारी, संस्कृत कर्तरी से सम्बन्ध किया जा सकता है । कन्दोमूलसाकम् (२।१) हिन्दी, बंगला तथा मैथिली में कन्द, संस्कृत में भी प्रयुक्त । खड्डा (खनि) (२।६६) हिन्दी में खड्डा । चाउला (तण्डूला) (३८) हिन्दी में चावल । ढंकनी पिधानिका (४।१४) हिन्दी में ढकनी। इसी प्रकार संस्कृति सूचक शब्द भी पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। उदाहरणार्थ-केश-रचना, बव्वरी (६।६०)-सामान्य केश-रचना, फुण्टा (६।८४)-रुखे केश बाँधने के लिए, ओलाग्गिर्भ (१११७२)-जूड़ा बाँधने के लिए; कुम्भी (२।३४ ) सुन्दर ढंग से सजाये गये केश विन्यास, ढुमन्तओ (५४७ ) रुखे बाल लपेटना, अणराहो (१।२४) सिर पर रंगीन कपड़ा लपेटना, नीरंगी (५॥३१) अवगुण्ठन, वसन्तोत्सव (फग्गू) ६।८२, आलुंकी (१।५३) लुकाछिपी का खेल, अम्बोच्ची-पुष्पलावी (१६) पुष्पचयन करने वाली मालिन अम्बसमी (१।३७)बासा भोजन, आमलयं(१।६७) अलङ्करण करने का घर उआली (१६०) सोने के बने कर्णाभूषण, उल्लरयं (१।१६०) कौड़ियों के आभूषण, अवरेइआ (१७१) शराब वितरित करने का बर्तन, डोंगिली (४।१२) पानदान, वण्णयं (७।३७) चन्दनचूर्णं । इस प्रकार यह प्राकृत- कोश साहित्य और संस्कृति विषयक शोध और
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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