________________
१३६
__ आचार्य हेमचन्द्र
कोश में सङ्ग्रहीत नामों की संख्या प्रो० बेनर्जी के अनुसार ३९७८ है जिनमें यथार्थ देशी वे केवल १५०० मानते हैं, शेष में १०० तत्सम, १८५० तद्भव और ५२८ संशयात्मक तद्भव शब्द बतलाते हैं। इस कोश की निम्नां. कित विशेषताएँ है१- सुन्दर साहित्यिक उदाहरणों का सङ्कलन किया गया है । २- सङ्कलित शब्दों का आधुनिक भारतीय भाषाओं के साथ सम्बन्ध स्थापित
किया जा सकता है। ३- ऐसे शब्दों का सङकलन किया है, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। ४- ऐसे शब्द सङ्कलित हैं, जिनके आधार पर उस काल के रहन-सहन और
रीति-रिवाजों का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ५- परिवर्तित अर्थवाले ऐसे शब्दों का सङकलन किया गया है, जो सांस्कृतिक . इतिहास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण और उपयोगी हैं। साहित्यिक सौन्दर्य- उदाहृत गाथाओं से अनेक गाथाओ का सरसता, भावतरलता एवं कलागत सौन्दर्य की दृष्टि से गाथा-सप्तशती के समान मूल्य है। इनमें शृगार, रतिभावना, नख-शिख चित्रण, धनिको के विलासभाव, रणभूमि की वीरता, संयोग, वियोग, कृपणों की कृपणता, प्रकृति के विभिन्न रूप, दृश्य, नारी की मसृण और मांसल भावनाएँ एवं नाना प्रकार के रमणीय दृश्य अङ्कित हैं। विश्व की किसी भी भाषा के कोश में इस प्रकार के सरस पद्य उदाहरण के रूप में नहीं मिलते । कोशगत शब्दों का अर्थ उदाहरण देकर अवगत करा देना हेमचन्द्र की विलक्षण प्रतिभा का ही कार्य है। उदाहरणार्थ- आयावलो य बालयवम्मि आवालयं च जलणियडे । आडोवियं च आरोसियम्मि आराइयं गहिए ।। १-७० आयवली-बालआतप, आलालयं-जलनिकटं, आडोवियं-आरोपितम् आराइयंग्रहितम् अर्थ में प्रयुक्त है, इन शब्दों का यथार्थ प्रयोग अवगत करने के लिए उदाहरण में निम्नांकित गाथा उपस्थित की गयी है ।
आयावले पसरिए कि आडोवसि रहंङ ! णियदहयं । - आराइय विसकन्दो आवालठियं पसाएसु ।। ७० प्रथम वर्ग हे चक्रवाल ! सूर्य के बाल आतप के फैल जाने पर, उदय होने पर, तुम अपनी स्त्री के ऊपर क्यों क्रोध करते हो ? तुम कमलनाल लेकर जल के निकट बैठी हुई अपनी भार्या को प्रसन्न करो। इस प्रकार ७५ प्रतिशत शृगारात्मक गाथाएँ हैं । ६५ गाथाएँ कुमारपाल की प्रशंसा विषयक हैं तथा शेष अन्य हैं ।