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हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ
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कोषों में पाये जाते हैं। इस महान् कार्य में उद्यत होने की प्रेरणा उन्हें कहाँ से मिली-यह हेमचन्द्र ने दूसरी गाथा और उसकी स्वोपज्ञ टीका में स्पष्टीकरण कर दिया है। जब उन्होंने उपलभ्य निःशेष देशी शब्दों का परिशीलन किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि कोई शब्द है तो साहित्य का, किन्तु उसका प्रयोग करतेकरते कुछ और ही अर्थ हो रहा है, किसी शब्द में वर्षों का अनुक्रम निश्चित नहीं है, किसी के प्राचीन और वर्तमान देश-प्रचलित अर्थ में विरोध है तथा कहीं गतानुगति से कुछ का कुछ अर्थ होने लगा है । तब आचार्य को यह आकुलता उत्पन्न हुई कि अरे, ऐसे अपभ्रष्ट शब्दों के कीचड़ में फंसे हुए लोगों का किस प्रकार उद्धार किया जाय । बस इसी कुतूहलवश वे इस देशी शब्द सङ्ग्रह के कार्य में प्रवृत्त हो गये । हेमचन्द्र ने उपर्युक्त प्रतिज्ञा-वाक्य में बताया है कि जो व्याकरण से सिद्ध न हों, वे देशी शब्द हैं; और इस कोश में इस प्रकार के देशी शब्दों के सङ्कलन की प्रतिज्ञा की गयी है। पर इसमें आधे से अधिक शब्द ऐसे हैं, जिनकी व्युत्पत्तियाँ व्याकरण के नियमों के आधार पर सिद्ध हो जाती हैं; जैसे अभयण्णिग्गमो-अमृतानिर्गम । हेमचन्द्र ने संस्कृत शब्द कोश में इस शब्द के न मिलने के कारण ही इसे देशी शब्दों में स्थान दिया है। इसी प्रकार डीला, हलुअ, अइहारा, थेरो शब्द देशी नाममाला में देशी माने गये है। और प्राकृत व्याकरण में संस्कृत निष्पन्न ।
इस कोश में ४०५८ शब्द संकलित हैं-इसमें तत्सम शब्द १८०, गर्भित तद्भव-१८५०, संशययुक्त तद्भव-५२८, अव्युत्पादित प्राकृत शब्द-१५००,
वर्णक्रम से लिखे गये इस कोश में ८ अध्याय हैं और कुल ७८३ गाथायें हैं। उदाहरण के रूप में इसमें ऐसी अनेक गाथायें उद्धृत हैं जिनमें मूल में प्रयुक्त शब्दों को उपस्थित किया गया है । इन गाथाओं का साहित्यिक मूल्य भी कम नहीं है। कितनी ही गाथाओं में विरहणियों की चित्तवृत्ति का सुन्दर विश्लेषण किया गया है। उदाहरणों की गाथाओं का रचयिता कौन है, यह विवादास्पद है। शैली और शब्दों के उदाहरणों को देखने से ज्ञात होता है कि इनके रचयिता भी आचार्य हेम होने चाहिये। शब्द-विवेचन के सम्बन्ध में अभिमान चिह्न, अवन्ति, सुन्दरी, गोपाल, देवराज, द्रोण, घनपाल, पाठोदूखल, पादलिप्ताचार्य, राहुलक, शाम्ब, शीलङ्क और सातवाहन इन १२ शास्त्रकारों तथा सारतर देशी और अभिमान चिह्न इन दो देशी शब्दों के सूत्र पाठों के उल्लेख मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि देशी शब्दों के अनेक कोश ग्रन्थकार के सम्मुख थे।