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________________ १३२ आचार्य हेमचन्द्र है । अनेकार्थसङग्रह - आचार्य हेमचन्द्र ने अपना 'अभिधानचिन्तामणि कोश' "अनेकार्थं सङग्रह” नामक परिशिष्ट कोश लिखकर पूरा किया है । अनेकार्थ सङग्रह में ७ काण्ड और १६३६ श्लोक हैं । अनुक्रम निम्नानुसार है - ( १ ) एकस्वर काण्ड - श्लोक १७, (२) द्वि-स्वर काण्ड - श्लोक ६१७, (३) त्रि-स्वर काण्डश्लोक ८१४, (४) चतुस्वर काण्ड - श्लोक ३५६, (५) पञ्चम् स्वर काण्ड - श्लोक ५७, (६) षट्स्वर काण्ड - श्लोक ७ तथा ( ७ ) परिशिष्ट काण्ड - श्लोक ६८ ॥ प्रारम्भिक श्लोक में ही तीर्थकरों को प्रणाम करते हुए उन्होंने कहा है कि अब वे ६ अध्यायों में अनेकार्थ सङग्रह की रचना करते हैं । जिसमें एक ही शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं । अनेकार्थक शब्दों के इस सङग्रह में प्रारम्भ एकाक्षर शब्दों से और अन्त षडक्षर शब्दों से होता है । शब्दों का क्रम आदिम arraft a तथा अन्तिम ककारादि व्यञ्जनों के अनुसार चलता है । 'अभिधान चिन्तामणि' में एक ही अर्थ के अनेक पर्यायवाची शब्दों का सङग्रह है किन्तु अनेकार्थ ग्रह में एक ही शब्द के अनेक अर्थ दिये हैं । 1 आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य महेन्द्रसूरि ने उनके नाम में अनेकार्थं सङग्रह पर वृत्ति लिखी । वृत्ति के द्वितीय अध्याय के अन्त में स्वयं महेन्द्रसूरि ही इस बात को स्वीकार करते हैं । इन कोशों से हेमचन्द्र ने संस्कृत कोशकार के रूप कीर्ति प्राप्त की । हेमचन्द्र के समय में तथा उनके बाद भी उनके कोश प्रमाण माने जाते थे । यह कई उद्धरणों से सिद्ध होता है । उदाहरणार्थ "हेमचन्द्रश्च रुद्रश्चामरोऽयं सनातनः " - देशी नाममाला • जिस प्रकार 'शब्दानुशासन' में हेमचन्द्र ने प्राकृत एवं अपभ्रंश का व्याकरण लिखकर शब्दानुशासन को पूर्णता प्रदान की उसी प्रकार कोश साहित्य में भी उन्होंने 'देशी नाममाला' लिखकर कोश साहित्य को पूर्णता दी । 'देशी नाममाला' के अन्त में हेमचन्द्र ने स्पष्ट लिखा है कि उन्होंने अपने व्याकरण के परिशिष्ट के रूप में उक्त कोशों की रचना की । वृत्ति में उन्होंने लिखा है कि शब्दानुशासन के ८ वें अध्याय का परिशिष्ट देशी नाममाला कोश है | अतः यह स्पष्ट है कि आचार्य हेमचन्द्र के मत से उक्त कोश उनके व्याकरण से सम्बन्धित है । 'देशी नाममाला' उनके प्राकृत व्याकरण का ही एक भाग है । 'काव्यानुशासन' में भी उन्होंने शब्दानुशासन शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में ही किया है जिसमें व्याकरण तथा कोश दोनों का अन्तर्भाव हो जाता है । १ - एकादि पंचस्वराव्ययाभिघः परिशिष्ठः काण्ड: - अनेकार्थ सङग्रह |
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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