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हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ
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देशी नाममाला में ३६७८ देशी शब्दों का सङ्कलन किया गया है। इसके आधार पर आधुनिक भाषाओं के शब्दों की साङगोपाङग व्युत्पत्ति लिखी जा सकती है । वास्तव में देशी नामों का सङ्ग्रह एवं सुव्यवस्थित विभाजन बड़ा ही कठिन कार्य था । हेमचन्द्र स्वयं कहते हैं कि देश्य शब्दों का सङ्ग्रह कठिन कार्य है । सङ्ग्रह करने पर भी उनका ग्रहण करना और भी कठिन है और इसीलिए हेमचन्द्र ने यह कार्य हाथों में लिया।
हेमचन्द्र ने देशी शब्द स्त्रीलिङ्ग में लिखकर उसे बोली जाने वाली भाषा से सम्बद्ध किया है। यह बोली जाने वाली भाषा संस्कृत अथवा प्राकृत व्याकरण के परे थी। इन देशी शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत से नहीं हो सकती थी। अतः इसे निरर्थक शब्दों का सङ्ग्रह कहकर डा० बूलर महोदय ने हेमचन्द्र की आलोचना की है, किन्तु डा० बूलर आलोचना करते समय हेमचन्द्र के मन्तव्य को समझ नहीं पाये । प्रो० मुरलीधर बेनर्जी ने स्वसम्पादित 'देशी नाममाला' के प्रस्तावना में इस प्रश्न पर युक्ति सङ्गत विचार किया है तथा हेमचन्द्र के आलोचकों को समुचित उत्तर दिया है। 'देशी नाममाला' में लिखित उदाहरणों के सम्बन्ध में प्रो० पिशेल ने उन्हें मूर्खतापूर्ण बतलाया है तथा कहा कि उनसे कोई सयुक्तिक अर्थ नहीं निकल सकता । प्रो० बेनर्जी ने उत्तर देते हुए लिखा है कि यदि गाथाओं को शुद्ध रूप में पढ़ा जाय तो उनसे ही सुन्दर अर्थ निकलता है। प्रत्येक रसिक उन गाथाओं को सुन्दर कविता समझकर पढ़ता है ।' फिर भी अनेक गाथाओं के संशोधन की अभी भी आवश्यकता है ।
१- "These examples are either void of all sense or of an incr
edible stupidity............It was most disgusting task to make out the sense of these examples, some of which have remained rather obscure to me.” (P. 8. Introduction to Desinammala B. S. S.) "If the illustrative gathas of Hemchandra which have appeared to Pischel as examples of 'extreme absurdity' or non-sense are read correcting the errors made by the copyists in the manner explained above, they will yield very good sense. A few examples of such corrected readings are given below to make the point clear ( P. P. XLIII to LI ). After discussing this point in detail Prof. Banerjee comes