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हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ
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पाश्या-स्त्रियों के जूड़े में लगी हुई माला ।
__ इसी प्रकार कान, कण्ठ, गर्दन, हाथ, पैर, कमर इत्यादि विभिन्न अङगो में धारण किये जाने वाले आभूषणों के अनेक नाम आये हैं । इससे मालूम होता है कि प्राचीन समय में आभूषण धारण करने की प्रथा कितनी अधिक थी। मोती की १००, १००८, १०८, ५५४, ५४, ३२, १६, ८, ४, २, ५, ६४ विभिन्न प्रकार की लड़ियों की माला के विभिन्न नाम आये हैं।
___सामान्य स्त्रियों की साड़ी के नीचे पहने जाने वाले वस्त्र का नाम है 'चलनी'। वैसे लहँगे के लिए चलनक अथवा चण्डातक शब्द आते हैं। पुत्रोत्पत्ति या विवाहादि के समय मित्रों के द्वारा, नौकरों के द्वारा हठपूर्वक जो कपड़ा माल छीन लिया जाता है उसका नाम पूर्णपात्र, पूर्णानक होता है । सङगीत-कला के विषय में हेमचन्द्र के कोशा के अनुसार उस समय वीणा के दो भेद थे। काष्ठमयी वीणा और शारिरी वीणा, एक में तार से दूसरे में कंठ से उक्त स्वरों की उत्पत्ति होती थी। इस प्रकार संस्कृति और सभ्यता की दृष्टि से यह कोश बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न वस्तुओं के व्यापारियों के नाम तथा व्यापार योग्य अनेक वस्तुओं के नाम भी इस कोश में सङग्रहीत है। प्राचीन समय में मद्य बनाने की अनेक विधियाँ प्रचलित थीं। शहद मिलाकर बनाये गये मद्य को मध्वासव, गुड़ से बने मद्य को मैरेय, चावल उबालकर तैयार मद्य को नग्नहू कहा गया है।
गायों के भी वष्कयणी, धेनु, परेष्टु, गृष्टि, कल्या, सुव्रता, करटा, बजुला द्रोणदुग्धा, पीनोध्नी, धेनुष्या. नचिकी पलिकनी, समांसमीना, सुकरा वत्सला इत्यादि नामों को देखने से मालूम होता है कि उस समय गौ-सम्पत्ती बहुत महत्वपूर्ण पी। विभिन्न प्रकार के घोड़ों के नामों से ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत में कितने प्रकार के घोड़े काम में लाये जाते थे, साधुवाही, शुक्ल, कश्य, श्रीवृक्षकी, पञ्चभद्र, कर्क खोंगाह, क्रियाह, नीलका, सुरूहक, वोरूवान, कुलाह, उकनाह, शोण, हरिक, पंगुल, हल ह तथा अश्वमेघ के घोड़े को ययुः कहा गया है। इतना ही नहीं, घोड़े की विभिन्न प्रकार की चालों के विभिन्न नाम आये
__कुली (३।२१८)-बड़ी साली, यन्त्रणी या केलिकुञ्चिका (३।२१६)छोटी साली इत्यादि नामों को देखने से अवगत होता है कि उस समय छोटी साली के साथ हँसी मजाक करने की प्रथा थी। साथ ही पत्नी की मृत्यु के पश्चात् छोटी साली से विवाह भी किया जाता था इसीलिये उसे केलिकुञ्चिका कहा गया