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________________ हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ १२५ क्रमांक वैश्या शूद्रा था तब सङकरित वर्णों की भी अनेक जातियां बनी । आचार्य हेमचन्द्र के समय प्रचलित सङकरित जातियों के वर्णन से तत्कालीन समाज-व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है । यद्यपि सभी वर्गों को अपनाने का प्रयास इसमें भी है फिर भी उच्चनीच का भाव अत्यधिक प्रभावशील था यह सत्य है । वर्णसङकरो के मातृ-पितृ जाति बोधक चक्र पितृजाति मातृजाति वर्णसङकर सन्तान जाति ब्राह्मण क्षत्रिया मूर्धावसिक्तः ब्राह्मण अम्बष्ट ब्राह्मण पाराशव, निषाद क्षत्रिय वैश्या माहिष्य क्षत्रिय शूद्रा उग्र वैश्य शूद्रा करण शूद्र वैश्या आयोगव क्षत्रिया क्षता ब्राह्मणी चाण्डाल वैश्य क्षत्रिया मागध ब्राह्मणी वैदेहक क्षत्रिय ब्राह्मणी सूत माहिष्य करणी तक्षा (रथकारक) मभिधानचिन्तामणि कोश की विशेषताएं हेमचन्द्र के कोश ग्रन्थ, विशेषत: 'अभिधानचिन्तामणि कोश', अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । हेमचन्द्र के कोश ग्रन्थों की पहली विशेषता यह है कि ये कोश इतिहास और तुलना की दृष्टि से बहुत मूल्यवान हैं । विभिन्न ग्रन्थ तथा ग्रन्थकारों के उद्धरण विविध दृष्टियों से भाषा सम्बन्धी परिचय प्रस्तुत करते हैं। दूसरी विशेषता यह है कि धनञ्जय के समान शब्द योग से अनेक पर्यायवाची शब्दों के बनाने का विधान हेमचन्द्र ने किया है किन्तु 'कविरूढ़या ज्ञेयोदाहरणावलि' के अनुसार उन्हीं शब्दों को ग्रहण किया है जो कविसम्प्रदाय द्वारा प्रचलित एवं प्रयुक्त हैं-उदाहरणार्थ पति वाचक शब्दों से कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रणयिनी, एवं विभा शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पत्नी के नाम और कलत्रवाचक शब्दों में वर, रमण, प्रणयी, एवं प्रिय शब्दों वैश्य
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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