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आचार्य हेमचन्द्र
१२. गौड, १३. चाणक्य, १४. चान्द्र, १५. दन्तिल, १६. दुर्ग, १७. द्रमिल, १८. धनपाल, १६. धन्वन्तरी, २०. नन्दी, २१. नारद, २२. नैरुक्त, २३ पदार्थविद्, २४. पालकाप्य, २५. पौराणिक, २६. प्राच्य, २७. बुद्धिसागर, २८. बौद्ध, २६. भट्टतोत, ३०. भट्टि, ३१. भरत, ३२. भागुरि, ३३. भाष्यकार, ३४. भोज, ३५. मनु, ३६. माघ, ३७. मुनि, ३८. याज्ञवल्क्य, ३६. याज्ञिक, ४०. लौकिक, ४१. लिङ्गानुशासनकृत, ४२. वाग्भट, ४३. वाचस्पति, ४४. वासुकि, ४५. विश्वदत्त, ४६. वैजयन्तीकार, ४७. वैद्य, ४८. व्याड़ि, ४६. शाब्दिक, ५०. शाश्वत, ५१. श्रीहर्ष, ५२. श्रुतिज्ञ, ५३. सभ्य, ५४. स्मार्त, ५५. हला युध तथा ५६. हृध्य ।
ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं- १. अमरकोश, २. अमरटीका, ३. अमरमाला, ४. अमरशेष, ५. अर्थ-शास्त्र, ६. आगम, ७. चान्द्र, ८. जैन-समय, ६. टीका, १०. तर्क, ११. त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, १२. द्वयाश्रय महाकाव्य, १३. धनुर्वेद १४. धातुपारायण, १५. नाट्यशास्त्र, १६. निघण्टु, १७. पुराण, १८. प्रमाणमीमांसा, १६. भारत, २०. महाभारत, २१. माला, २२. योगशास्त्र, २३. लिङगानुशासन, २४. नामपुराण, २५. विधुपुराग, २६. वेद, २७. वैजयन्ती, २८. शाकटायन, २६. श्रुति, ३०. संहिता तथा ३१. स्मृति ।
इस कोश में व्याकरण वार्तिक, टीका, पञ्जिका, निबन्ध, सग्रह, परिशिष्ट, कारिका, कालिन्दिका, निघण्टु, इतिहास, प्रहेलिका, किंवदन्ति, वार्ता आदि की भी व्याख्या और परिभाषा प्रस्तुत की गयी हैं। इन परिभाषाओं से साहित्य के अनेक सिद्धान्तों पर प्रकाश पड़ता है।
आरम्भ में ही आचार्य कहते हैं कि यह प्रयास निःश्रेयस, अर्थात् मुक्ति के लिए है । आत्म-प्रशंसा एवं परनिन्दा से क्या प्रयोजन ? अतः जैन-सम्प्रदाय की दृष्टि से भी इसमें धार्मिक सामग्री पर्याप्त रूप में मिलती हैं। रूढ़, यौगिक मिश्र शब्दों के विभागों का वर्णन कर मुक्तादि जीवों के क्रम वर्णित हैं। पहले काण्ड में गणघरादि अङगों के सहित देवाधिदेव, वर्तमान भूत भविष्यत् अर्हन्तों का वर्णन किया गया है । दूसरे काण्ड में अङ्गों सहित देवों का वर्णन किया गया है। तीसरे में अङ्गों सहित मनुष्यों का, चौथे में अगों सहित तिर्यञ्चों का वर्णन किया गया है। इनमें एक इन्द्रिय वाले पृथ्वीकायिक शुद्ध पृथ्वी, बालू रेत इत्यादि; जलकायिक, हिम, बर्फ आदि; तेजकायिका-अङ्गारादि; वायुकायिकपवनादि; वनस्पतिकायिक, शैवालादि; दो इन्द्रिय वाले जीव-काष्ठकीट, घुण, कृमि आदि जीव; तीन इन्द्रिय वाले जैसे पिपीलक, पीलक; चार इन्द्रिय वाले