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________________ हेमचन्द्र के कोश-ग्रन्थ १२१ कहते हैं । यह योग गुण, क्रिया तथा अन्य सम्बन्धों से उत्पन्न होता है। गुण के कारण नीलकण्ठ, शितिकण्ठ, कालकण्ठ इत्यादि शब्द ग्रहण किये गये हैं। क्रिया के सम्बन्धों से उत्पन्न होने वाले स्रष्टा, धाता इत्यादि हैं। अन्य सम्बन्धों में स्वस्वामित्व, जन्य, जनक, धार्यधारक, पतिकलत्र, सख्य, वाह्यवाहक, आश्रयआश्रयी एवं वध्यवध भाव सम्बन्ध ग्रहण किया गया है। स्ववाचक शब्दों में स्वभिवाचक शब्द या प्रत्यय जोड़ देने से स्वस्वामि वाचक शब्द बन जाते हैं । स्वामिवाचक प्रत्ययों में मतुप, इन् अण्, अक इत्यादि प्रत्यय एवं शब्दों में पाल भुज्, घन, नेतृ, शब्द परिगणित हैं । यथा-भू-मतुप्=भूमान्, घन+इन्-घनी, शिव+अण् =शवः,दण्ड+इक=दाण्डिकः,भू+पाल=भूपालः,भू+पति =भूपतिः आचार्य हेमचन्द्र ने उक्त प्रकार के सभी सम्बन्धों से निष्पन्न शब्दों को कोश में स्थान दिया है । उन्होंने मूल श्लोकों में जिन शब्दों का सङ्ग्रह किया है, उनके अतिरिक्त 'शेषाश्च' कहकर कुछ अन्य शब्दों को स्थान दिया है। इसके पश्चात् स्वोपज्ञ वृत्ति में भी छूटे हुए शब्दों को समेटने का प्रयास किया है। इस प्रकार इस कोश में उस समय तक प्रचलित और साहित्य में व्यवहृत शब्दों को स्थान दिया है । यही कारण है कि यह कोश संस्कृत साहित्य में सर्वश्रेष्ठ है । टीका में नाममाला को 'अभिधानचिन्तामणि' नाम दिया गया है । सम्भवत: वृत्ति का नाम 'तत्वबोधविधायिनी' है। इस ग्रन्थ में शब्द प्रमाण्य वासुकि एवं व्याड़ि से लिया गया है । व्युत्पत्ति धनपाल और प्रपञ्च से ली गयी है । विकास विस्तार वाचस्पति एवं अन्यों से लिया गया है । इस प्रकार वे जिन्हें प्रमाण मानते हैं उन प्रधान आचार्यों के नाम उसमें हैं। वासुकि और व्याड़ि के आधार पर वे शब्द की सत्यता सिद्ध करते हैं। व्याख्या के लिए धनपाल की सहायता लेते हैं । यह प्रतीत होता है कि आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण-ग्रन्थ की पर्याप्त आलोचना हुई है अतः वे इस ग्रन्थ में प्रमाण देने में प्रारम्भ से ही विशेष सावधान हैं। 'अभिधान चिन्तामणि' के प्रत्येक काण्ड के अन्त में परिशिष्ट है। अनेकार्थ सङग्रह इसी का पूरक ग्रन्थ है। 'अभिधानचिन्तामणि कोश' अनेक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इतिहास की दृष्टि से इस कोश का बड़ा महत्व है। हेमचन्द्र ने स्वोपज्ञ वृत्ति टीका में पूर्ववर्ती निम्नलिखित ५६ ग्रन्थकारों तथा ३१ ग्रन्थों का उल्लेख किया है । ग्रन्थकार है१. अमर, २. अमरादि, ३. अलङ्कारकृत् ४. आगमविद्, ५. उत्पल, ६. कात्य, ७. कामन्दकि, ८. कालिदास ६. कौटिल्य, १०. कौशिक, ११. क्षीरस्वामी
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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