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आचार्य हेमचन्द्र
शब्दों की जानकारी सहज में ही हो जाती है । इसके अतिरिक्त हेमचन्द्र के जीवनकाल का समय कोश-साहित्य की ससृद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। १२ वीं शताब्दी से हमें विभिन्न प्रकार के अनेक कोश ग्रन्थ प्राप्त होते हैं । भैरवी के 'अनेकार्थ कोश' में अमर, शाश्वत, हलायुध, और धन्वन्तरि का उपयोग किया गया है । अभयपाल की "नानार्थ-रत्नमाला" इसी युग में रची गयी थी । महेश्वर के 'विश्वप्रकाश कोश' की रचना इसी युग की है । केशव स्वामी के ग्रन्थ द्वय "नानार्थार्णव संक्षेप" एवं "शब्दकल्पद्रुम इसी युग की देन हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने भी 'अभिधानचिन्तामणि" 'अनेकार्थसङ्ग्रह', 'निघण्टुशेष' एवं 'देशी नाममाला' कोशों की रचना इसी समय की। आचार्य हेमचन्द्र युग-प्रवर्तक थे, अतः वे समकालीन कोश-निर्माण-आन्दोलन से दूर कैसे रह सकते थे ? हेमचन्द्र के कोश ग्रन्थ- १२ वीं शताब्दी में जितने कोश ग्रन्थ लिखे गये उनमें से सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ हेमचन्द्र के कोश हैं । श्री ए० बी० कीथ भी अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में उक्त कथन का समर्थन करते हैं । आचार्य हेमचन्द्र का 'अभिधान चिन्तामणि' ६ काण्डों में समानार्थक शब्दों का सङ्ग्रह है, जिनका आरम्भ जैन देवताओं से और अन्त भाववाचक शब्दों (Abstracts), विशेषणों और अव्ययों से होता है । इस पद्यमय कोश के ६ काण्ड हैं-(१) देवाधिदेव काण्ड-८६, (२) देवकाण्ड-२५०, (३) मर्त्यकाण्ड-५६८, (४) भूमिकाण्ड४२३, (५) नारक काण्ड-७ और (६) सामान्य काण्ड-१७८ ।
इस प्रकार इस कोश में कुल १५४२ पद्य हैं । उसके बाद उन्होंने शेष नाममाला' लिखी जिसकी श्लोक संख्या कुल २०८ है तथा अनुक्रम निम्नानुसार है-शेष नाममाला-प्रथम काण्ड शेषः श्लो० १५४३ से १६३३; द्वितीय काण्ड शेषः श्लोक १६३४ से १६६८, चतुर्थ काण्ड शेष: श्लोक १६६६ से १७३८, नारक पंचम शेषः श्लोक १७३६ से १७४०-५० ।
अभिधान चिन्तामणि-इस कोश में समानार्थक शब्दों का सङ्ग्रह किया गया है। वे आरम्भ में ही रूढ़, यौगिक और मिश्र शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखने की प्रतिज्ञा भी करते हैं । व्युत्पत्ति से रहित, प्रकृति तथा प्रत्यय के विभाग करने से भी अन्वर्थहीन शब्दों को रूढ कहते हैं-जैसे आखण्डल आदि । कुछ आचार्य रूढ़ शब्दों की भी व्युत्पत्ति मानते हैं, पर उस व्युत्पत्ति का प्रयोजन केवल वर्णानुपूर्वी का ज्ञान कराना ही है, अन्वर्थ प्रतीति नहीं। अतः 'अभिधान चिन्तामणि' में सङ्ग्रहीत शब्दों में प्रथम प्रकार के शब्द रूढ़ हैं ।
दूसरे प्रकार के शब्द यौगिक हैं। शब्दों के परस्पर अर्थानुगम को योग