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________________ अध्याय : ५ कोश ग्रन्थ हेमचन्द्र पूर्व कोश साहित्य - कालचक्र के अबाध रूप से चलते रहने से लौकिक शब्दों के भी ज्ञाताओं का हास हो जाने पर आचार्यों ने लौकिक कोशों का निर्माण किया। इसका वास्तविक ज्ञान आज तक अन्धकार में ही पड़ा है, क्योंकि प्रायः सभी प्राचीन कोश अनुपलब्ध हैं। १२ वीं शताब्दी में रचित, 'शब्द कल्पद्रुम' नामक कोश में २६ कोशकारों के नाम उपलब्ध होते हैं। सम्प्रति उपलब्ध कोशों में सबसे प्राचीन ख्याति प्राप्त अमरसिंह का 'अमर-कोश' है। प्राचीन प्रणाली के अनुसार अध्ययन-अध्यापन करने वाले पण्डितों के यहाँ अभी भी 'अमरकोश' कण्ठस्थ करने की प्रवृत्ति चली आ रही है । इससे उसकी लोकप्रियता अभी तक अक्षुण्ण है, यह सिद्ध होता है। अतः आचार्य हेमचन्द्र ने अपने कोशों के निर्माण में इनसे प्रेरणा एवं सहायता ली हो तो उसमें आश्चर्य नहीं । 'अमरकोष' के अतिरिक्त ६ वी तथा १० वीं शताब्दी में जैन आचार्यों ने संस्कृत कोश निर्माण में जो योगदान दिया, वह भी हेमचन्द्र के सामने था। उसी शताब्दी में धनञ्जय के तीन कोश ग्रन्थ भी हेमचन्द्र के लिए प्रेरणा के स्रोत बने होंगे क्यों कि 'नाममाला' में कोशकार ने केवल २०० श्लोकों में ही आवश्यक शब्दावली का चयन किया है । शब्द से शब्दान्तर बनाने की प्रकिया हेमचन्द्र के कोशों में भी दिखायी देती है- उदाहरणार्थ पृथ्वी के नामों के आगे घर शब्द या घर के पर्यायवाची शब्द जोड़ देने से पर्वत के नाम, पति या पति के समानार्थक स्वामिन् आदि शब्द जोड़ देने से राजा के नाम एवं रूह शब्द जोड़ देने से वृक्ष के नाम हो जाते हैं। इससे एक प्रकार के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी से दूसरे प्रकार के पर्यायवाची
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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