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________________ ११४ आचार्य हेमचन्द्र मोक्ष की प्राप्ति बतलाते हैं । अग्निपुराण त्रिवर्गसाधन बतलाते हैं । भामह, दण्डिन् तथा वामन ने यश एवं आनन्द को काव्य का लक्ष्य बतलाया है । 'काव्यानुशासन' में अपने समर्थन के लिए आचार्य हेमचन्द्र विविध ग्रन्थ एवं ग्रन्थकर्ता के नाम उद्धृत करने में अतीव दक्ष हैं । ऐसा करने से उनकी मौलिकता क्षुण्ण नहीं होती है। मम्मट के 'काव्य प्रकाश' के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने राजशेखर के 'काव्य मीमांसा', आनन्दवर्धन के 'ध्वन्यालोक' तथा अभिनवगुप्ताचार्य, रुद्रट, दण्डिन्, धनञ्जय आदि के ग्रन्थों से अनेक उद्धरण प्रस्तुत किये हैं । 'काव्यानुशासन' के छठे अध्याय में अर्थालङकारों का निरूपण करते समय विवेक विवृत्ति में पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा चर्चित सभी अलङकारों के सम्बन्ध में कहा गया है । भोज राजा के ग्रन्थ 'सरस्वतीकण्ठाभरण' एवं 'शृगारप्रकाश' में प्रस्तुत मत का जिनमें अधिकतम अलङ्कारों की संख्या निर्दिष्ट है, हेमचन्द्र द्वारा खण्डन किया गया है । भामह, वामन, दण्डिन् इत्यादि के अलङकार रीति इत्यादि पक्ष स्वतन्त्र काव्यतत्व के रूप में आचार्य हेमचन्द्र को मान्य नहीं थे। पूर्वकाल में यद्यपि रस काव्यनिष्ठ माना जाता था तो भी दण्डी, वामन, उद्भट आदि के मन पर रस का महत्व शनैः शनैः बढ़ रहा था । सर्व प्रथम रुद्रट ने काव्य तत्व के रूप में 'रस' को स्वतन्त्र स्थान दिया एवं चर्चा की। तदनन्तर राजशेखर, भोज, अग्नि पुराणकार, हेमचन्द्र, मम्मट, इत्यादि ने रसतत्व को आत्मतत्व मानकर उसका स्वतन्त्र विवेचन किया । रस के विषय में आचार्य हेमचन्द्र ने भरत मत का ही अनुकरण किया है। वे 'काव्यानुशासन' में स्पष्ट लिखते हैं कि वे अपना मत निर्धारण अभिनवगुप्त एवं भरत के आधार पर कर रहे हैं कतिपय लेखकों को 'काव्यानुशासन' में मौलिकता का अभाव खटकता है। म.म.पी.व्ही. काणे के मतानुसार आचार्य हेमचन्द्र प्रधानतः वैयाकरण थे तथा अलङकार-शास्त्री गौण रूप में थे। इसलिए उनके मतानुसार हेमचन्द्र का 'काव्यानुशासन' सङग्रहात्मक हो गया है। श्री त्रिलोकीनाथ झा का मत भी प्रो.पी.व्ही. काणे से मिलता-जुलता है और उन्होंने भी 'काव्यानुशासन' में मौलिकता का अभाव ही देखा'। श्री ए० बी० कीथ, भी 'काव्यानुशासन' में मौलिकता देख नहीं पाते; श्री एस० एन० दासगुप्त एवं एस०के०७० भी इस विषय में कीथ का ही अनुसरण करते हैं। श्री विष्णुपद भट्टाचार्य ने अपने प्रबन्ध में श्री म० म० काणे के मत का खण्डन किया है तथा हेचमन्द्र के 'काव्यानुशासन' की मौलिकता प्रस्थापित १ -बिहार रिसर्च सोसायटी, Vol XL III भाग एक दो पृष्ठ २२-२३
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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