SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य हेमचन्द्र ११२ है । व्युत्पत्ति के विषय में हेमचन्द्र कहते हैं कि लोक- शास्त्र तथा काव्य में प्रावीण्य प्राप्त करना ही व्युत्पत्ति है- “लोकशास्त्र काव्येषु निपुणता व्युत्पत्तिः” । काव्य की परिभाषा में हेमचन्द्र का मत मम्मट के अनुरूप दिखायी देता है । किन्तु उसमें भी कुछ सूक्ष्म भेद हैं- हेमचन्द्र ने अपनी परिभाषा में अलकारों को समाविष्ट कर लिया है । 'च' अक्षर से अपवाद सूचित किया गया है । कभी-कभी बिना अलङकार के भी काव्य हो सकता है । किन्तु साधारण तौर पर अलङ्कार काव्य के लिए अत्यावश्यक हैं । आचार्य हेमचन्द्र और मम्मट की काव्य- परिभाषा में और भी सूक्ष्म अन्तर यह है कि हेमचन्द्र ने गुण, दोष, अलङकार का अस्तित्व रस की कसौटी पर ही रखा है । मम्मट ने ऐसा नहीं किया है । हेमचन्द्र सत्यतः रस- सिद्धान्त के अनुयायी प्रतीत होते हैं । इसीलिये वे अलङ्कारों को रसाश्रित, रस के अंग मानते हैं । उनके मत के अनुसार जो रस की हानि करने वाले अर्थात् रसापकर्षक हैं, वे दोष होते हैं । तथा जो रस को वृद्धिगत करने वाले अर्थात् रसोत्क हैं, वे गुण कहलाते हैं । 'काव्य प्रकाशकार' कहीं भी यह कसौटी नहीं अपनाते हैं । इसके विपरीत मम्मट तो ध्वनि मत के अनुयायी दिखायी देते हैं । उन्होंने 'काव्य प्रकाश' में ध्वनि विवरण में ध्वनि के एक प्रकार के रूप में ( असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य) रस का विवेचन किया है । सम्भवतः इसलिये मम्मटाचार्य ध्वनि प्रस्थापन परमाचार्य कहे जाते है। हेमचन्द्र ने 'काव्यानुशासन' के द्वितीय अध्याय में ही स्वतन्त्र रूप से रस चर्चा की है तथा रस-विवरण के समय अभिनव गुप्ताचार्य की अभिनवभारती टीका ज्यों कि त्यों उदघृत की है । ( ४ ) मम्मट एवं मुकुलभट्ट के से 'लक्षणा' रूढ़ि अथवा प्रयोजन पर आधारित होती है, किन्तु हेमचन्द्र इसके विरोधी हैं । उनके मत से लक्षणा केवल प्रयोजन पर आधारित होती है । 'काव्य प्रकाश' में काव्य के प्रकार उत्तम, मध्यम, अधमादि से विषय प्रथम अध्याय में ही वर्णित हैं जिससे काव्यशास्त्र के प्राथमिक छात्रों को एकदम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । 'काव्यानुशासन' में रस चर्चा एवं शेष चर्चा के अन्त में काव्य के प्रकारों की चर्चा की है जिससे समझने में सुलभता, सुगमता होती है । काव्य के १० गुणों को हेमचन्द्र तथा मम्भट ने तीन गुणों के अन्तर्गत ( ओज, प्रसाद, माधुर्य ) दिखाया है तथा शेष दोषाभाव बतलाया है । मम्मट ने 'काव्य प्रकाश' में ६१ अलङकारों का वर्णन किया है किन्तु हेमचन्द्र ने केवल २९ अलङकारों से ६१ अलङ्कारों का काम चलाया
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy