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आचार्य हेमचन्द्र
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है । व्युत्पत्ति के विषय में हेमचन्द्र कहते हैं कि लोक- शास्त्र तथा काव्य में प्रावीण्य प्राप्त करना ही व्युत्पत्ति है- “लोकशास्त्र काव्येषु निपुणता व्युत्पत्तिः” । काव्य की परिभाषा में हेमचन्द्र का मत मम्मट के अनुरूप दिखायी देता है । किन्तु उसमें भी कुछ सूक्ष्म भेद हैं- हेमचन्द्र ने अपनी परिभाषा में अलकारों को समाविष्ट कर लिया है । 'च' अक्षर से अपवाद सूचित किया गया है । कभी-कभी बिना अलङकार के भी काव्य हो सकता है । किन्तु साधारण तौर पर अलङ्कार काव्य के लिए अत्यावश्यक हैं ।
आचार्य हेमचन्द्र और मम्मट की काव्य- परिभाषा में और भी सूक्ष्म अन्तर यह है कि हेमचन्द्र ने गुण, दोष, अलङकार का अस्तित्व रस की कसौटी पर ही रखा है । मम्मट ने ऐसा नहीं किया है । हेमचन्द्र सत्यतः रस- सिद्धान्त के अनुयायी प्रतीत होते हैं । इसीलिये वे अलङ्कारों को रसाश्रित, रस के अंग मानते हैं । उनके मत के अनुसार जो रस की हानि करने वाले अर्थात् रसापकर्षक हैं, वे दोष होते हैं । तथा जो रस को वृद्धिगत करने वाले अर्थात् रसोत्क
हैं, वे गुण कहलाते हैं । 'काव्य प्रकाशकार' कहीं भी यह कसौटी नहीं अपनाते हैं । इसके विपरीत मम्मट तो ध्वनि मत के अनुयायी दिखायी देते हैं । उन्होंने 'काव्य प्रकाश' में ध्वनि विवरण में ध्वनि के एक प्रकार के रूप में ( असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य) रस का विवेचन किया है । सम्भवतः इसलिये मम्मटाचार्य ध्वनि प्रस्थापन परमाचार्य कहे जाते है। हेमचन्द्र ने 'काव्यानुशासन' के द्वितीय अध्याय में ही स्वतन्त्र रूप से रस चर्चा की है तथा रस-विवरण के समय अभिनव गुप्ताचार्य की अभिनवभारती टीका ज्यों कि त्यों उदघृत की है ।
( ४ ) मम्मट एवं मुकुलभट्ट के से 'लक्षणा' रूढ़ि अथवा प्रयोजन पर आधारित होती है, किन्तु हेमचन्द्र इसके विरोधी हैं । उनके मत से लक्षणा केवल प्रयोजन पर आधारित होती है । 'काव्य प्रकाश' में काव्य के प्रकार उत्तम, मध्यम, अधमादि से विषय प्रथम अध्याय में ही वर्णित हैं जिससे काव्यशास्त्र के प्राथमिक छात्रों को एकदम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । 'काव्यानुशासन' में रस चर्चा एवं शेष चर्चा के अन्त में काव्य के प्रकारों की चर्चा की है जिससे समझने में सुलभता, सुगमता होती है । काव्य के १० गुणों को हेमचन्द्र तथा मम्भट ने तीन गुणों के अन्तर्गत ( ओज, प्रसाद, माधुर्य ) दिखाया है तथा शेष दोषाभाव बतलाया है ।
मम्मट ने 'काव्य प्रकाश' में ६१ अलङकारों का वर्णन किया है किन्तु हेमचन्द्र ने केवल २९ अलङकारों से ६१ अलङ्कारों का काम चलाया