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हेमचन्द्र के अलङ्कार-ग्रन्थ
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जाती हैं तथा उस दृष्टि से तत्तद ग्रन्थकारों की कृति मानी जाती हैं"। आचार्य हेमचन्द्र द्वारा प्रस्तुत मौलिकता की इस परिभाषा से यह अनुमान होता है कि वे अपने समय में अनेक ग्रन्थों के कर्तृत्व के विषय में आलोचना के शिकार जरूर बने होंगे। उसके निराकरणार्थ ही उन्हें ऐसा स्पष्टीकरण देना पड़ा। हेमचन्द्र के मत से कोई भी ग्रन्थकार बिलकुल नयी चीज नहीं लिखता। उस मूल विषय का विकास एवं विकास की शैली नयी होती है । हेमचन्द्र की मौलिकता की यह कसौटी यदि उन्हीं पर लागू की जाय तो उनकी मौलिकता शत प्रतिशत सिद्ध होती है। ___ काव्यानुशासन की रचना करते समय मम्मट के 'काब्य प्रकाश' का हेमचन्द्र ने विशेष उपयोग किया है । 'काव्यानुशासन' में मम्मट एवं उनके 'काव्य प्रकाश' का उल्लेख कई बार आता है । फिर भी 'काव्यानुशासन' में हेमचन्द्र की मौलिकता अक्षुण्ण है। यद्यपि 'काव्य प्रकाश' के साथ 'काव्यानुशासन' का बहुत साम्य है किन्तु कहीं-कहीं ही नहीं अपितु पर्याप्त स्थानों पर हेमचन्द्राचार्य ने मम्मट का विरोध भी किया है।
. सर्व प्रथम 'काव्य का प्रयोजन' पर चर्चा करते हुए मम्मट ने काव्य के छः प्रयोजन बताये हैं- (१) यश प्राप्ति (२) अर्थ लाभ (३) व्यवहार ज्ञान (४) अशुभ निवारण (५) तात्कालिक आनन्द और (६) कान्तातुल्य उपदेश । आचार्य हेमचन्द्र ने इसका विरोध किया है । उनके मतानुसार आनन्द, यश एवं कान्तातुल्य उपदेश ही काव्य के प्रयोजन हो सकते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने यहाँ मम्मट द्वारा बताये अन्य तीन प्रयोजन छोड़ दिये हैं। अर्थलाभ, व्यवहार ज्ञान, एवं अनिष्ट निवृत्ति हेमचन्द्र के मतानुसार काव्य के प्रयोजन नहीं हैं।
हेमचन्द्र के अनुसार काव्य का प्रधान कारण केवल प्रतिभा है । मम्मट के अनुसार काव्योत्पत्ति में प्रधान तीन कारण होते हैं- (१) शक्ति या प्रतिभा (२) निपुणता या व्युत्पत्ति तथा (३) आव्याज्ञशिक्षयाभ्यास अर्थात किसी श्रेष्ठ कवि के पास शिक्षा पाना। आचार्य हेमचन्द्र के मत से काव्यनिर्मिति का प्रधान हेतु प्रतिभा ही है । यहाँ भी उन्होंने मत भिन्नता दिखलाकर मम्मट द्वारा निर्देशित शेष कारण गौण बतलाये हैं। कारणों में प्रधान तथा गौण का अन्तर स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है। हेमचन्द्र के अनुसार प्रतिभा सदैव नैसगिकी होती
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१- "अनादय एवैता विद्या: संक्षेप विस्तार विवक्षया नवनवीभवन्ति
तत्तत्कर्तृका श्योच्यन्ते"-प्रमाणमीमांसा-हेमचन्द्र; पृष्ठ १-२