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__ आचार्य हेमचन्द्र
तापस का मजाक उड़ाया गया है । 'मणिकुल्या' वस्तु का उद्घाटन करती है । पुरुषार्थ-सिद्धि के लिए कही गयी वर्णनात्मक कथा 'परिकथा' है। इतिवृत्त के खण्ड पर आधारित कथा ‘खण्ड कथा' है। समस्त फलवाली कथा ‘सकल कथा' है और एक का पर चलने वाली कथा 'उपकथा' है । रासक के उन्होंने तीन भेद किये हैं-कोमल, उद्धत तथा मिश्र ।
___ नवाँ सूत्र चम्पू काव्य की परिभाषा देता है । तथा १० वाँ सूत्र अनिर्बद्ध मुक्तक की परिभाषा देता है । ११ वें सूत्र के अनुसार एक कविता को मुक्तक, दो कविताओं को सन्दानितक, तीन कविताओं को विशेषक, तथा चार कविताओं के पुञ्ज को कलापक कहते हैं । १२ वें सूत्र के अनुसार ५ से १४ कविताओं के पुञ्ज को कुलक कहते हैं । १३ वे सूत्र में कोश की परिभाषा दी गयी है । "स्वपरकृत सूक्ति समुच्चयःकोशः” । अर्थात सुन्दर श्लोकों का सङग्रह (स्वयं का अथवा दूसरों का) कोश कहलाता है। अलङकारचूड़ामणि में मुक्तक के उदाहरणस्वरूप अमरूक का 'अमरूशतक' उदघृत किया है। कोश के उदाहरण स्वरूप 'सप्तशतक' (हाल) सन्घात के उदाहरणस्वरूप 'वृन्दावन मेघदूत' तथा संहिता के उदाहरणस्वरूप 'यदुवंश दिलीपवंश' उद्धृत किया है।
हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में निम्नांकित ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों का उल्लेख किया है। ग्रन्थों के नाम-अवन्तिसुन्दरी, उषाहरण, पञ्चशिखशूद्रकथा, भामह विवरण, रावण-विजय, हरविलास, हरिप्रबोध, हृदय दपर्ण इत्यादि ।
ग्रन्थकारों के नाम (१) दण्डी, (२) भट्टतोत, (३) भट्टनायक, (४) भोजराज, (५) मम्मट, (६) मंगल, (७) आयुराज, (८) यायावरीय, (९) वामन, (१०) शाक्याचार्य, (११) राहुल, (१२) राजशेखर आदि । प्रो. रसिकलाल पारीख द्वारा सम्पादित काव्यानुशासन के अन्त में २५४ ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारों के नाम दिये हैं। 'काव्यानुशासन' का मूल्याङकन -
___ आचार्य हेमचन्द्र का काव्यानुशासन प्रायः सङग्रह ग्रन्थ है। उन्होंने अपने ग्रन्थ में राजशेखर ( काव्यामीमांसा ), मम्मट ( काव्य प्रकाश ), आनन्दवर्धन (ध्वन्यालोक), अभिनव गुप्त (लोचन) से सामग्री पर्याप्त मात्रा में ग्रहण की है। मौलिकता के विषय में हेमचन्द्र का अपना स्वतन्त्र मत है। उन्होंने अपनी प्रमाण-मीमांसा की टीका में प्रारम्भ में ही मौलिकता के विषय में स्पष्ट कहा है। "विधाएँ अनादि होती हैं, वे संक्षेप अथवा विस्तार की दृष्टि से नयी मानी १- अपभ्रंश भाषा और साहित्य-डा० देवेन्द्रकुमार जैन-पृष्ठ ३१७