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________________ १०८ आचार्य हेमचन्द्र महाकाव्य का भी उल्लेख करते हैं । इस प्रकार के एक भीम काव्य का नाम भी उन्होंने दिया है। इस ग्राम्य भाषा को उन्होंने ग्राम्य अपभ्रंश कहा है। निश्चय ही यह अपभ्र शेतर नयी भाषा का काव्य रहा होगा। काव्य को प्रेक्ष्य तथा श्रव्य दो भागों में विभाजित करने के पश्चात् आचार्य प्रेक्ष्य को फिर पाठ्य तथा गेय, दो भागों में विभाजित कर उनके और कई भाग बतलाते हैं । श्रव्य के मुख्य विभाग अर्थात् महाकाव्य, आख्यायिका, कथा, चम्पू, और अनिर्बद्धा । काव्यानुशासनानुसार काव्य संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और ग्राम्यापभ्रश में लिखा जा सकता है। कथा के प्रकारों में (१) आख्यान (२) निदर्शन (३) प्रवल्लिका (४) मन्थल्लिका (५) मणिकुल्या (६) परिकथा (७) खण्ड कथा (८) सकल कथा (६) उपकथा तथा (१०) बृहत्कथा वर्णित हैं । हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में अपभ्रश और ग्राम्य भाषा में रचे हुए महाकाव्यों में सर्गों के लिए क्रमशः आश्वास सन्धि और अवस्कन्ध शब्दों का प्रयोग किया है, किन्तु स्वयं उन्होंने अपने द्वयाश्रय को आश्वासों में नहीं, प्रत्युत सर्गों में ही विभक्त किया है। प्रथम सूत्र में 'काव्यं प्रेक्ष्यं श्रव्यं च' काव्य के दो भाग करके अलङ्कारचूड़ामणि में भटतोत के आधार पर कवि-कर्म की जानकारी दी है। द्वितीय सूत्र ‘प्रेक्ष्यं पाठ्यं गेयं च' प्रेक्ष्य को दो भागों में विभाजित करता है। तृतीय सूत्र में पाठ्य के १२ भाग गिनाये हैं-(१) नाटक (२) प्रकरण (३) नाटिका (४) समवकार (५) ईहामृग (६) डिम (७) व्यायोग (८) उत्सृष्टिकाङ्क (8) प्रहसन (१०) भाण (११) वीथी (१२) सट्टक । अलङकारचूड़ामणि में भरत के 'नाट्यशास्त्र' के १२ वें अध्याय के उद्धरण हैं तथा 'विवेक' में अभिनव गुप्त की टीका उद्धृत है। 'विवेक' में पाठ्य के १२ विभागों के अतिरिक्त टोटक, कोहल द्वारा कथित तथा अन्य पाठ्यों का विवरण दिया है। चतुर्थ सूत्र में गेय के ११ भाग बतलाये हैं-(१) डोम्बिका (२) भाण (३) प्रस्थान (४) शिङगक (५) भाणिक (६) प्रेरण (७) रामक्रीड (८) हल्लीसक (6) रासक (१०) श्री गदित और (११) रागकाव्य । इनका वर्णन अलङका रचूड़ामणि में किसी अज्ञात ग्रन्थ के आधार पर किया गया है। उसमें दूसरे गेय प्रकार जैसे सम्पा, चलित, द्विपदी आदि का भी उल्लेख है । ब्रह्मा, भरत, कोहल का अध्ययन करने के लिए निर्देश है, जिसमें अधिक जानकारी उपलब्ध है । "प्रपञ्चस्तु ब्रह्मभरतकोहलादिशास्त्रेभ्योऽवगन्तव्यः' । पञ्चम सूत्र में श्रव्य के पाँच प्रकार बतलाये हैं । छठे सूत्र में महाकाव्य
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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