SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हेमचन्द्र के अलङ कार-ग्रन्थ १०७ निम्न २६ अलङ कार ३१ सूत्रों में चर्चित है :१. उपमा, २. उत्प्रेक्षा. ३. रूपक, ४. निदशना, ५. दीपक ६. अन्योक्ति, ७. पर्यायोक्ति, ८. अतिशयोक्ति. ६. आक्षेप, १०. विरोध, ११. सहोक्ति, १२. समासोक्ति, १३. जाति, १४. व्याजस्तुति, १५. श्लेष, १६. व्यतिरेक: १७. अर्थान्तरन्यास, १८. सन्देह १६. अपह्न ति, २०. परिवृत्ति, २१. अनुमान, २२. स्मृति, २३. भ्रान्ति, २४. विषम, २५. सम, २६. समुच्चय, २७. परिसङ ख्या, २८. कारणमाला, २६. सङकर, 'हृद्य साधर्म्यमुपमा' कहकर उपमा की परिभाषा में हेमचन्द्र ने अलङकार के सौन्दर्य पक्ष पर विशेष जोर दिया है। इस प्रकार छ: अध्यायों में १४३ सूत्रों में काव्यशास्त्र के सम्पूर्ण तन्त्र का वर्णन किया गया है। विवेक में सरस्वती-कण्ठाभरण के रचियता भोज एवं अन्य आलङकारिकों द्वारा निर्दिष्ट सभी अलङ कारों की चर्चा की गयी है तथा यह बताया गया है कि कुछ अलङ्कार 'काव्यानुशासन' में निर्दिष्ट अलङ्कारों में समाविष्ट होते हैं । तथा कुछ अलङ्कार की कोटिमें ही नहीं आते हैं। सप्तम अध्याय में नायक एवं नायिका भेद-प्रभेदों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । प्रथम सूत्र में ही नायक की परिभाषा दी है-'समग्रगुणः कथाव्यापी नायकः' । सूत्र २ से १० तक नायक के गुण बतलाये हैं । सूत्र ११ में नायक के ४ प्रकार तथा सूत्र १२-१६ तक चारों प्रकारों का वर्णन है । २० वें सूत्र में प्रतिनायक की परिभाषा दी है। "व्यसनी पापकृतलुब्धः स्तब्धो धीरोद्धतः प्रतिनायकः" । सूत्र २१ से २६ तक विभिन्न प्रकार की नायिकाओं का वर्णन है। ३० वें सूत्र में नायिकाओं की ८ अवस्थाओं का वर्णन है- (१) स्वाधीनपतिका (२) प्रोषितभर्तृका (३) खण्डिता (४) कलहान्तरिता (५)वासकसज्जा (६) विरहोत्कण्ठिता (७) विप्रलब्धा तथा (८) अभिसारिका । इनमें से अन्तिम तीन परकीया नायिका का से सम्बन्ध है । “अन्यत्रयवस्था परस्त्री"। ३१-३२ वां सूत्र प्रतिनायिका से सम्बन्धित है । शेष सूत्र ३३ से ५२ तक स्त्रियों के गुण तथा स्वभाव से सम्बन्धित हैं। यह अध्याय मुख्यतः धनञ्जय के 'दशरूपक' तथा भरत के 'नाट्य शास्त्र' तथा अभिनव गुप्ताचार्य की टीका पर आधारित है। ___ अष्टम अध्याय में काव्य को प्रेक्ष्य तथा श्रव्य दो भागों में विभाजित किया है । आचार्य हेमचन्द्र गद्य-पद्य के आधार पर काव्य का विभाजन नहीं करते । वे संस्कृत, प्राकृत अपभ्रश के महाकाव्यों के अतिरिक्त ग्राम्य भाषा के १ -काव्यानुशासन पृष्ठ ३३६-४०५
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy