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आचार्य हेमचन्द्र
चतुर्थ में ६, पञ्चम् अध्याय में ६, षष्ठ में ३१, सप्तम् में ५२, तथा अष्टम् अध्याय में १३ सूत्र विद्यमान हैं। इन २०८ सूत्रों में काव्यशास्त्र से सम्बन्ध रखने वाले सारे विषयों का प्रतिपादन बड़े सुन्दर रूप में किया गया है । ये सूत्र अलङकारचूड़ामणि में विस्तारित किये गये हैं। विवेक में और ज्यादा विस्तार किया गया है। अनुमान है कि अध्यायान्त में अलङकारचूड़ामणि नाम का उल्लेख होने से टीका को यह नाम बाद में दिया गया होगा।
अलङकारचूड़ामणि में कुल ८०७ उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं तथा विवेक में ८२५ उदाहरण प्रस्तुत हैं । इस प्रकार सम्पूर्ण 'काव्यानुशासन' में १६३२ उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं । 'अलङकारचूड़ामणि' एवं 'विवेक' में ५० कवियों के तथा ८१ ग्रन्थों के नामों का उल्लेख पाया जाता है । कहीं-कहीं ग्रन्थ-नाम ते हैं किन्तु उसके कर्ता के नाम का उल्लेख नहीं है। संस्कृत कवि एवं काव्य-शास्त्र के इतिहास का अध्ययन करने में यह जानकारी सहायक है ।
प्रथम अध्याय - इस अध्याय में काव्य की परिभाषा, काव्य के हेतु, काव्य-प्रयोजन, आदि पर समुचित प्रकाश डाला गया है। प्रतिभा के सहायक व्युत्पत्ति और अभ्यास, शब्द तथा अर्थ का रहस्य, मुख्यार्थ, गौणार्थ, लक्ष्यार्थ तथा व्यङग्यार्थ की तात्विक विवेचना की गयी है। पहले सूत्र में मङगल नमस्कार तदनन्तर दूसरे सूत्र में ग्रन्थ का उद्देश्य बतलाया गया है। तीसरे सूत्र में काव्य का प्रयोजन संक्षेप में बतलाया है । 'काव्यमानन्दाय यशसेकान्तातुल्य तयोपदेशायच' अर्थात् हेमचन्द्र के अनुसार काव्य के तीन प्रयोजन होते हैं-आनन्द यश एवं कान्तातुल्य उपदेश । चतुर्थ सूत्र में काव्य के कारण बताते हैं 'प्रति. भास्य हेतुः अलङकार चूड़ामणि में प्रतिभा की - 'नवनवोल्लेखशालिनी प्रज्ञा' - सुन्दर परिभाषा दी है, अर्थात् नयी-नयी कल्पना करने वाली प्रज्ञा ही काव्यनिर्मिति का प्रधान कारण है । पञ्चम् तथा षष्ठ सूत्र में प्रतिभा की जैन परिभाषा दी है। सप्तम् मूत्र में अध्ययन एवं अभ्यास से प्रतिभा को सफल करने के लिए कहा गया है । यथा 'व्युत्पत्यभ्यासाम्यां संस्कार्या' अष्टम् सूत्र में अध्ययन के विषय संक्षेप में बताये हैं, जिनका विस्तार 'अलङकारचूड़ामणि' में तथा और अधिक विस्तार 'विवेक' में किया गया है । नवम् तथा दशम् सूत्र में अभ्यास के विषय में वर्णन है, जो 'अलजकारचूड़ामणि' में संक्षेप में तथा 'विवेक' में पूर्णरूपेण वणित है । ग्याहरवें सूत्र में काव्य के स्वरूप का मम्मट-सदृश वर्णन है । यथा 'अदोषौ सगुणौ सालङ्कारो च शब्दायों काव्यम्' ॥११॥ हेमचन्द्र की काव्य की परिभाषा में अलङ्कार समाविष्ट हैं।