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आचार्य हेमचन्द्र
ही प्रत्ययों के आधार पर सङ कलित है पर हेमचन्द्र ने कुछ ही शब्दों का चयन प्रत्ययों के आधार पर किया है । पाणिनि ने प्रत्ययों की चर्चा कर प्रायः तद्धितान्त शब्दों और कृदन्तान्त का ही सङकलन किया है और यह सङ्कलन हेमचन्द्र की अपेक्षा बहुत छोटा है । हेमचन्द्र ने नादानुकरण का आधार लेकर शब्द के अन्तरङ्ग और बहिरङ ग को पहचानने की चेष्टा की है। उनका तीनों लिङ गों में शब्दों का पूर्वोक्त दिशा-क्रम से निर्देश करना उनके सफल वैयाकरण होने का प्रमाण है। अतएव वैयाकरण हेमचन्द्र का महत्व शब्दानुशासन के लिए जितना है, उससे कहीं अधिक लिङ गानुशासन के लिए है। लिङगानुशासन में अधिकृत शब्दों का विवेचन, उनकी विशिष्टता, क्रम-बद्धता आदि का सूचक है। हेमचन्द्र का शब्द सङकलन वैज्ञानिक है, उदाहरणार्थ -
ध्र वका क्षिपका कनीनिका शम्बूका शिविका गवेधुका । कणिका केका विपादिका, महिका, यूका मक्षिकाष्टका ।। वृचिका, कूचिका, टीका, काशिका केणिकोमिका ।
जलौका प्राविका धूका कालिका दीधिकोष्ट्रिका ॥ इसमें एक साम्य अन्तिम स्वरों में भी मिलता है। उपर्युक्त सभी शब्दों में भी अन्तिम 'आ' वर्ण का साम्य विद्यमान है । हेमचन्द्र ने तीसरे प्रकार का शब्दसङ्ग्रह शब्द-साम्य के आधार पर किया है । शब्द-साम्य का यह आधार केवल अन्तिम शब्दों में ही नहीं मिलता, अपितु कहीं-कहीं तो नादानुकरण भी मिलता है। उदाहरणार्थ
गुन्द्रा मुद्रा क्षुद्रा भद्रा भस्त्रा छत्रा यात्रा मात्रा दंष्ट्रा फेला वेला मेला गोला शाला माला ।।२१।। मेखला सिध्मला लीला रसाला सुर्वला बला। कुहाला शंकुला हेला शिला सुवर्चला कला ॥२२।। (स्त्रीलिङग प्रकरण)
अतः हेमचन्द्र ने शब्द सङ्कलन का एक प्रमुख क्रम शब्द-साम्य माना है। फिर भी अर्थ-साम्य के आधार पर भी हेमचन्द्र ने शब्दों का सङ्ग्रह किया है । अग-वाचक, पशु-पक्षी-वाचक, दास-वाचक, दल-वाचक, वृक्ष-वाचक, पल्लव, पुष्प, शाखा-वाचक तथा वस्तु-वाचक शब्दों का अर्थानुसारी सङकलन किया गया है। उदा०
हस्तस्तनौष्ट नखदन्तकपोल गुल्फ केशान्घुगुच्छ दिवसर्तुपतद् ग्रहणाम् निर्यासनाकर सकण्ठ कुठार कोष्ठ हैमारि वर्ष विषवोलस्था शनीनाम् ॥पुल्लिङग।