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हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ
इसमें अङगवाची शब्दों का सङकलन किया गया है। अन्तिम वर्ण-साम्य पर ही प्रायः शब्दों का सङकलन होता है। इन शब्दों के क्रम में लालित्य एवं अनुप्रास का भी पूरा ध्यान रखा गया है । जैसे कपुर, नूपुर, कुटीर, विहार, वार इत्यादि । हेमचन्द्र ने इस लिङगानुशासन में पुल्लिंगी, स्त्रीलिङगी, नपुंसकलिङगी, पुंस्त्रीलिङ्गी, पुनपुंसकलिङगी, स्त्रीक्लीबलिङ्गी, स्वतः स्त्रीलिङगी और परलिङगी शब्दों का सङग्रह किया है। पुं स्त्रीलिङगी शब्दों के सङकलन में पुल्लिङगी शब्दों को बतलाकर उन्हीं का स्त्रीलिङगी रूप ग्रहण करने का निर्देश किया गया है। हेमचन्द्र ने स्वतः स्त्रीलिङगो शब्दों का एक पृथक प्रकरण रखा है, यह प्रकरण नितान्त मौलिक है । नक्षत्र अर्थ में अश्विनी, चित्रा आदि स्वतः स्त्रीलङग है । हेमचन्द्र ने द्वद्व समास में, अपत्यर्थ में, स्वार्थ में प्रकृत्यर्थ में परलिङ्ग का निर्देश किया है । इस तरह हेम लिङगानुशासन पुल्लिङग, स्त्रीलिङग और नपुंसक लिङगवाची शब्दों की पूर्ण जानकारी कराने में सक्षम है।
छन्दोऽनुशासन- छन्द-शास्त्र की परम्परा में आचार्थ हेमचन्द्र ने भी छन्दोऽनुशासन की रचना की। इसका उल्लेख 'छन्दचूडामणि' नाम से भी आता है। यह रचना ८ अध्यायों में विभक्त है और उस पर स्वोपज्ञ टीका भी है। इस रचना में हेमचन्द्र ने जैसा उन्होंने अपने व्याकरणादि ग्रन्थों में किया है, यथाशक्ति अपने समय तक आविष्कृत तथा पूर्वाचार्यों द्वारा निरूपित समस्त संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश छन्दों का समावेश कर देने का प्रयत्न किया है; भले ही वे उनके समय में प्रयोग में आते रहे हों या नहीं । भरत और पिङगल के साथ उन्होंने स्वयंभू का भी आदर पूर्वक स्मरण किया है। माण्डव्य, भरत, कश्यप, सैतव, जयदेव आदि प्राचीन छन्द-शास्त्र प्रणेताओं के उल्लेख भी किये हैं । उन्होंने छन्दों के लक्षण तो संस्कृत में लिखे हैं किन्तु उनके उदाहरण उनके प्रयोगानुसार संस्कृत, प्राकृत या अपभ्रंश में दिये हैं । उदाहरण उनके स्वनिर्मित है। कहीं से उद्धृत किये हुए नहीं। इसमें 'रसगङगाधर' के समान सब कुछ आचार्य हेमचन्द्र का अपना है। हेमवन्द्र ने अनेक ऐसे प्राकृत-छन्दों के नाम लक्षण और उदाहरण भी दिये हैं जो स्वयम्भू छन्दस् में नहीं पाये जाते । स्वयम्भू ने जहाँ १ से २६ अक्षरों तक के वृत्तों के लगभग १०० भेद किये हैं, वहाँ हेमचन्द्र ने उनके २८६ भेद-प्रभेद बतलाये हैं। जिनमें 'दण्डक' सम्मिलित नहीं है । संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के समस्त छन्दों के शास्त्रीय लक्षणों व उदाहरणों के लिए यह रचना एक महाकोश का कार्य करती है।
हेमचन्द्र ने अपने छन्दोऽनुशासन में जयदेवकृत छन्दोवृत्ति का उल्लेख