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हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ
ने भी हेमलिङ्गानुशासन पर वृत्ति लिखी है | श्लोक विवरण निम्न अनुसार है। पुल्लिंगाधिकार १-१७, स्त्री-लिङग धिकार १८-५०, नपुंसक लिङगाधिकार ५१७४ पुंस्त्री लिङगाः ७५-८६, पुं नपुंसकलिङ्गाः ८७-१२२ स्त्री नपुंसक लिङगाः १२३-१२७ स्वतः स्त्री लिङगाधिकार १२८-१३३ ओर उपसंहार १३४-५३८ ।
इस प्रकार संस्कृत भाषा का पञ्चाङग परिपूर्ण अनुशासन करने के लिए हेमचन्द्र ने 'हैमालिङगानुशानम्' लिखा है। उनका यह लिङगानुशासन अपने ढङ्ग का निराला है । लिङ गानुशासन के अभाव में उनका शब्दानुशासन अधूरा ही रह जाता है । अत: सामान्य-विशेष लक्षणों द्वारा लिङ्ग का अनुशासन उन्होंने किया है। उनके इस लिङ गानुशासन में जितने अधिक शब्दों का सङ्ग्रह है उतने अधिक शब्द किसी भी लिङ गानुशासन में नहीं आये हैं।
आचार्य हेमचन्द्र के पूर्व पाणिनि का लिङगानुशासन, अमरकवि का अमरकोषान्तर्गत लिङगानुशासन तथा अनुभूति-स्वरूपाचार्य का लिङगानुशासन उपलब्ध है । हेमचन्द्र ने अपना लिङगानुशासन अमरकोष की शैली के आधार पर लिखा है । पद्य-बद्धता के साथ इसमें स्त्रीलिङग, पुल्लिङग और नपुंसकलिङग इन तीनों लिङ्गों में शब्दों का वर्गीकरण भी बहुत अंशों में अमरकवि के ढङ्ग का है । इतना होने पर भी हेमलिङ्गानुशासन की अपनी विशेषताएँ हैं
(१) हेमचन्द्र ने अपने लिङ्गानुशासन में विशाल शब्द-राशि का संग्रह किया है । इन शब्दों के सार्थ सङकलन से एक बृहद शब्द-कोश तैयार किया जा सकता है। उन्होंने रुचिर, ललित, कोमल शब्दों के साथ कटु, कठोर शब्दों का भी सङकलन कर लिङ गज्ञान को सहज, सुलभ, बोध-गम्य बनाने का अद्वितीय प्रयास किया है।
(२) शब्दों का सङ ग्रह विभिन्न साम्यों के आधार पर किया गया है। (अ) शब्द-साम्य के आधार पर, (आ) अर्थ-साम्य के आधार पर (इ) विषय के आधार पर (ई) अन्त्य अकारादि वर्गों के क्रम पर (उ) सामान्यतया प्रत्ययों के आधार पर और (ऊ) वस्तु विशेष की समता के आधार पर ।
(३) विशेषण के विभिन्न लिङ गों की भी चर्चा की गयों है । एक शेष द्वारा शब्दों के लिङ्गनिर्णय की चर्चा की है। इसमें हेमचन्द्र की नितान्त मौलिकता है।
(४) विभिन्नार्थक शब्दों का प्रयोग एक साथ अनुप्रास लाने तथा लालित्य उत्पन्न करने के लिए किया है।
पाणिनि को अपेक्षा हैमालिङ गानुशासन में शैली-गत भिन्नता के अतिरिक्त और भी कई नवीनताएँ विद्यमान हैं । पाणिनीय लिङ गानुशासन को समूचा