________________
आचार्य हेमचन्द्र
चर्चा है। सूत्र ३२६ से ४४८ सूत्र तक अपभ्रंश भाषा की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है । अन्तिम दो सूत्रों में यह भी बतलाया गया है कि प्राकृत में उक्त लक्षणों का व्यत्यय भी पाया जाता है तथा जो बात वहाँ नहीं बतलाई गयी है, उसे संस्कृतवत् सिद्ध समझना चाहिये। सूत्रों के अतिरिक्त वृत्ति भी स्वयं हेम ने लिखी है । इस वृत्ति में सूत्रगत लक्षणों को बड़ी विशदता से उदाहरण देकर समझाया गया है । आदि के प्रास्ताविक सूत्र "अथ प्राकृतम्” की वृत्ति विशेष महत्वपूर्ण है । इसमें ग्रन्थकार ने प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति यह दी है कि प्रकृति संस्कृत है और उससे उत्पन्न व आगत प्राकृत, अत: आचार्य हेम प्राकृत शब्दों का अनुशासन संस्कृत शब्दों के रूपों को आदर्श मानकर किया है । हेम के मत से प्राकृत शब्द तीन प्रकार के हैं- तत्सम्, तद्भव, और देशी तत्सम और शब्दो को छोड़कर शेष तद्भव शब्दों का अनुशासन इस व्याकरण द्वारा किया गया है ।
आचार्य हेम ने आर्षम् ८1१1३ सूत्र में आर्ष प्राकृत का नामोल्लेख किया है और बतलाया है "आर्ष प्राकृतं बहुलं भवति, तदपि यथास्थानं दर्शयिष्यामः । आर्षे हि सर्वे विधयो विकल्पयन्ते" अर्थात् अधिक प्राचीन प्राकृत आर्ष आगमिक प्राकृत है । इसमें प्राकृत के नियम विकल्प से प्रवृत होते हैं ।
हेम का प्राकृत व्याकरण रचना-शैली और विषयानुक्रम के लिए प्राकृतलक्षण' और 'प्राकृत - प्रकाश' का आभारी है । पर हेम ने विषय विस्तार में बड़ी पटुता दिखलायी है | अनेक नये नियमों का भी निरूपण किया है । ग्रन्थन शैली भी हेम की चण्ड और वरुरुचि की अपेक्षा परिष्कृत है । तथापि 'हेम' व्याकरण में प्रायः सभी प्रक्रियाएँ अधिक विस्तार से बतलायी गयीं हैं और उनमें कई विधियों का समावेश किया गया है जो स्वाभाविक है । क्योंकि हेमचन्द्र के सम्मुख वरुरुचि की अपेक्षा लगभग पाँच-छः शतियों का भाषात्मक विकास और साहित्य उपस्थित था; जिसका उन्होंने पूरा उपयोग किया है । चूलिका पैशाची और अपभ्रंश का उल्लेख वरुरुचि में नहीं किया। चूलिका और अपभ्रंश की अनुशासन हेम का अपना है । अपभ्रंश भाषा का नियमन ११६ सूत्रों में स्वतन्त्र रूप से किया है | उदाहरणों में अपभ्रंश के पूरे के पूरे दोहे उद्धृत कर नष्ट होते हुए विशाल साहित्य का उन्होंने संरक्षण किया है। इसमें सन्देह नहीं कि आचार्य हेम के समय ने प्राकृत भाषा का बहुत अधिक विकास हो गया था और उसका विशाल साहित्य विद्यमान था । अतः उन्होंने व्याकरण की प्राचीन पर म्परा को अपनाकर भी अनेक नये अनुशासन उपस्थित किये हैं ।
अतः इस बारे में दो मत होने का प्रश्न ही नहीं उठता कि हेमचन्द्र ने
ε२