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हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ
रीत पाणिनि ने एक प्रत्यय विधायक सूत्रों को एक साथ रखने की चेष्टा की है । हेमचन्द्र की अर्थानुसार प्रत्यय विधायक सूत्र शैली है । चतुर्थ पाद तद्धित काही शेष है ।
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सप्तम् अध्याय के प्रथम पाद को आरम्भ 'य' प्रत्यय से हुआ है । पूर्वोक्त अर्थों के अतिरिक्त जो अर्थ शेष रह गये हैं, उन अर्थों में सामान्यतया 'य' प्रत्यय का विधान किया गया है। हेमचन्द्र की यह प्रत्यय- प्रक्रिया पाणिनि की अपेक्षा सरल है । पाणिनि ने कुछ शब्दों के आगे ठक्, ठज्ञ आदि प्रत्यय किये है, तथा ठ को इक् करने के लिए 'ठस्येकः' ७|३|५० सूत्र लिखा है, किन्तु हेमचन्द्र ने सीधे ही इक् कर दिया है। उनकी यह प्रक्रिया लाघव शब्दानुशासन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । द्वितीय पाद का मुख्य वर्ण्य विषय संज्ञा विशेषण बनाना है । इस पाद में जहाँ सूत्रों से काम नहीं चला है, वहाँ वृत्ति के आदेशों से काम लिया है | उदाहरणार्थ वाचाल या वाग्मी बनाने के लिए पाणिनि ने ब्यर्थ अधिक बोलने वाले के लिए 'वाचाल' शब्द बनाया है। हेमचन्द्र ने वाच
लाटी' ७ २ २४, की वृत्ति में 'क्षेपेगम्ये' अर्थात् अल्प्रत्यय निन्दा अर्थ में होता है । तृतीय पाद में प्रधानतः समासान्त तद्धित प्रत्ययों का सङ्ग्रह है । चतुर्थं पाद में मुख्य रूप से तद्धित प्रत्ययों के आ जाने के बाद स्वर में जो विकृति होती है उसीका निर्देश किया गया है । द्वित्व तद्धित में प्लुत का सन्निवेश हेमचन्द्र की मौलिकता प्रगट करता है, जिसका पाणिनीय शास्त्र में बिलकुल अभाव है । ऐसा मालूम होता है कि हेमचन्द्र के समय में इस प्रकार के प्लुतों का प्रयोग बढ़ गया था । जिनका सङग्रथन करके हेमचन्द्र को अपनी भाषा - शास्त्रीय प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर मिला ।
सिद्ध हेम शब्दानुशासन के ८ वें अध्याय में प्राकृत भाषा का अनुशासन लिखा गया है। आचार्य हेम का प्राकृत व्याकरण समस्त उपलब्ध प्राकृत ब्याकरणों में सबसे अधिक पूर्ण और व्यवस्थित है । इसके ४ पाद हैं । प्रथम पाद में २७१ सूत्र हैं, इनमें सन्धि, व्यञ्जनान्त, शब्द, अनुस्वार, लिङ्ग, विसर्ग, स्वरव्यत्यय और व्यञ्जनव्यत्यय का विवेचन किया गया है । द्वितीय पाद के २१८ सूत्रों में संयुक्त व्यञ्जनों के परिवर्तन, समीकरण, स्वर-भक्ति, वर्ण-वैपर्यय, शब्दादेश, तद्धित, निपात, और अन्ययों का निरूपण है । तृतीय पाद में १८२ सूत्र हैं जिनमें कारक, विभक्तियों तथा क्रिया - रचना सम्बन्धी नियमों का विवरण दिया गया है । चौथे पाद में ४४८ सूत्र हैं । चतुर्थ पाद के ३२८ सूत्र तक आर्ष (महाराष्ट्री प्राकृत) शौरसेनी, मागधी, पैशाची और चूलिका पैशाची की विशेषताओं की