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जीवन परिचय ]
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गाथा प्रक्षिप्त मानी गयी हैं ।' उक्त १११ वीं गाथा को पंचास्तिकाय के अंग्रेजी संस्करण में सम्मलित नहीं किया गया है। जबकि उक्त ग्रंथ के द्वितीय संस्करण में उक्त गाथा के प्रक्षिप्त होने की सूचना भी दी गई है । इस संदर्भ मे ५ चन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि नाचार्य अमृतन्द्र ने २८ मूलगुणों में नग्नता का उल्लेख किया है । श्रन्यत्र यथाजातरूप का भी उल्लेख किया है, अतः उन्हें काष्ठासंघी मानना महज भ्रम ही है । काष्ठासंघ को जैनाभास मानकर अमृतचन्द्र को बलात् उससे सम्बद्ध करना उचित नहीं है। मूलसंघ के संस्थापक आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों पर टीका रचने वाले तथा जिनशासन प्रभावक और अध्यात्म सरिता प्रवाहित करने वाले आचार्य अमृतचन्द्र के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की अन्यथा कल्पना उचित नहीं है। जिन्हें अध्यात्म सा नहीं है वे तो कुन्दकुन्द को भी नहीं छोड़ते, किन्तु कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन शासन के सूत्रधार हैं, अतः किसी की कुछ चलती नहीं 1 अमृतचन्द्र तो उन्हीं के अनुगामी हैं । *
इस तरह सर्व प्रकार से सूक्ष्म परीक्षण तथा विचार करने पर आचार्य अमृतचन्द्र काष्ठासंधी सिद्ध नहीं होते ।
नेविसंघ तथा प्राचार्य प्रभूतचन्द्र- " पुरुषार्थं सिद्धयुपाय" के कर्ता आचार्य अमृतचंद्र ९६२ विक्रम सम्बत् में जीवित थे यह बात पट्टावलियों तथा पाश्चात्य विद्वानों की रिपोर्टों से प्रमाणित होती है । नम्बिसंघ की पट्टावल में आचार्य कुन्दकुन्द हुए, उसी संघ में प्राचार्य अमृतचंद्र कीर्ति हुए हैं । नन्दिसंघ के आचार्यों के नाम के अन्त में नन्दि, चन्द्र, तथा भूषण शब्दों का प्रयोग किया जाता है । अमृतचंद्र का नाम भी
१. जैन निबन्ध रत्नावली, पृष्ठ २४६
२. पंचास्तिकाय ए. चक्रवर्ती, सेक्रेड बुक्स श्राक दी जैनाज यानक ३ १९२० ई. ३. पंचास्तिकाय भा. ज्ञा. प्र. दिल्ली, १९७५ ६.
४. लघुतरवस्फोट (अनुवाद डॉ पं. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य) प्र. पृष्ठ ७, १६८१ ई.
४. वही, पृष्ठ ७, ८
६. पुरुषार्थं सिद्धयुपाय, प्रस्तावना पृष्ठ ४ ( पं. नाथूराम प्रेमी) रायचंद जैन
शास्त्र माला
७. तत्त्वानुशासन, प्रस्तावना पृष्ठ ५०, बीर निर्वाण सम्वत् २४३१