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________________ जीवन परिचय ] प्रमाण या आधार के आचार्य अमृतचन्द्र को काष्ठासंघी नहीं कहा जा सकता। आठवीं बात विचारणीय रहती है कि अमृत चन्द्र की टीका तत्त्वप्रदीपिका में उक्त स्त्रीमुक्ति प्रसंग विषयक गाथाएं क्यों छूटी हैं ? इसका समाधान यह है कि प्रथम तो आचार्य अमृतचन्द्र ने केवल स्त्रीमुक्ति निषेध प्रकरण विषयक ही गाथाए नहीं छोड़ी अपितु अन्य प्रकरण विषयक गाथाएं भी छोड़ी हैं। प्रबचनसार में ही ऐसी दो गाथाओं पर प्राचार्य अमतचन्द्र ने कोई टीक नहीं लिखी जिनमें मासांहार वा दोष बताया गया है । इसका यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि आचार्य अमृतचन्द्र को मांसाहार को दोष बताना इष्ट नहीं था। इसी तरह स्त्रीमुक्ति प्रकरण सम्बन्धी गाथाओं की टीका के अभाव में ''अमतचन्द्र को स्त्रीमुक्ति प्रकरण का निषेध इष्ट नहीं था यह मारोप भी नहीं लगाया जा सकता। दूसरे, श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में स्त्रीमुक्ति प्रकरण को इष्ट माना गया है। इसके अतिरिक्त वे सबस्त्र (सनथ) गुरु, केवली के कवलाहार आदि कई बातें इष्ट मानते हैं जबकि आचार्य अमतचन्द्र ने अपने तत्त्वार्थसार में "परि ग्रहधारी को गुरु मानने का) तथा कोवली के कवलाहार मानने का' विरीत मान्यता अथवा विपरीत मिथ्यात्व कहकर खण्डन किया है । इससे स्पष्ट होता है कि जहाँ अमृतचन्द्र सनथ (सवस्त्र, सपरिग्रही) को गुरु भी मानने का निषेध वारते हैं, वहीं वे सर्वस्त्र स्त्री को मुक्ति कैसे मान सकते हैं तथा जब उन्होंने श्वेताम्बर मत सम्मत उक्त दो मान्यताओं का स्पष्ट रूप से खण्डन किया है लब बे स्त्री मुक्ति सम्बन्धी तीसरी मान्यता का समर्थन कैसे कर सकते हैं ? तीसरे, गाथाओं की कमी तथा अमृतचन्द्र की टीका न होने का कारण यह अबश्य हो सकता है कि दे गाथाएं अमृतचन्द्र के समक्ष उपलब्ध प्रति में होंगी ही नहीं, अन्यथा वे उनके सम्बन्ध में कुछ न कुछ सूचना अवश्य देते । चौथे यह सम्भव प्रतीत होता है कि अध्येता विद्वान् या साघु कुछ प्रासङ्गिक या अप्रासङ्गिक १. प्रवचनसार, गाथा २२६ के बाद "पके सु अ आमसु" - तथा " पक्कमपक्क" इत्यादि दो गाथाएं छटी है । तथा संयम और दया निरुपक अन्य दो गाथाएँ भी छोड़ी हैं जो क्रमशः २३९ तथा ३६६ गाथाएँ के बाद पाती हैं। २. सग्रन्थोऽगि च निग्रन्थो मासाहारी च चली। रूचिरेवंविधा रात्र विपरीतं हि स्मृतम् ।।६।। तत्वार्थसार अधिकार ५, पद्य. ६
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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