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________________ ६२ ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व माला से प्रकाशित प्रवचनसार (द्वितीय आवृत्ति) के अन्त में प्रशस्ति दी है जिसे एक अन्य संस्करण में “टीकाकार की प्रशस्ति" शीर्षक से छापा है जबकि उक्त प्रशस्ति टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र को नहीं है क्योंकि उक्त प्रशस्ति में विक्रम संवत् १४६६ में राजा वीरमदेव के काल में हुए भट्टारक हेमकीर्ति का विवरण दिया है तथा उनके संघस्थ हरिराज ब्रह्मचारी का उल्लेख किया है। उक्त सम्पूर्ण प्रशस्ति में अमृनचन्द्र का कहीं नाम भी नहीं हैं।' प्रवचनसार तथा उनकी टोकाओं के प्रमुख अध्येता स्वर्गीय डॉ. ए. एम. उपाध्ये ने भी उक्त प्रशस्ति को प्रतिलिपिकार को ही माना है, उसका अमृत चन्द्र से कोई भी सम्बन्ध नहीं है।' प्रशस्ति में उल्लिखित हेमको ति अवश्य काष्ठासंघो प्रतीत होते हैं जिससे प्रशस्ति सम्बन्धित है। काष्ठासंघ की गुर्वावलि में हेमकीर्ति का उल्लेख ६५ नम्बर पर है। पांचवें, काष्ठासंधी कई भट्टारकों ने समयसार, पंचा स्तिकाय आदि ग्रन्थों की प्रतिलिपियां कराई तथा उनमें गुरु परम्परा का विवरण दिया और अपने को कुन्दकन्दान्वयी भी लिखा तो क्या कुन्दकुन्दाचार्य को भी काष्ठासंघी मान लिया जावे परन्तु यह बात किसी भी समझदार को मान्य नहीं हो सकती। इसी तरह अमृत चन्द्र को भी काशसंघी नहीं माना जा सकता। छठवें, आचार्य अमृतचन्द्र ऐसे असाधारण आचार्य हुए हैं जिन्होंने अपनी कृतियों में कहीं भी अपने गुरु तथा उनकी परम्परा और कुल, संघ आदि का कोई भी उल्लेख नहीं किया प्रतः उक्त प्रशस्ति उनकी बताना सर्वथा अनचित एवं निराधार है। सातवें, प्राचार्य देवसेन ने काष्ठामघ को जनाभासी, मिथ्यात्व तथा उन्मार्ग प्रचारक लिखा है। जबकि आचार्य अमृतचन्द्र की समस्त कृतियाँ मूलसंत्री सिद्धान्तों की सम्पोषक एवं प्रचारक हैं, उन्हें काष्ठासघी बता कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को कलंकित करना तथा उन्हें अप्रमाणिक ठहराना होगा। इससे मूलसंघोय आचार्य परम्परा तथा आर्षनथों को प्रामाणिकता पर भी आंच आयेगी इसलिए बिना कोई ठोस १. सन्मति गंदेश. मार्च ८०, पृष्ठ १८, लेख-पं. बंशीधरजी शास्त्री एम. ए. 3. The Frasesti Printed at the end has Terthing to do with Amrtachzodra but it belongs possibly to Ascribe of aM.S. (See Pravachanasara's Introduct ion, Page 91-98) 3. An Epitome of Jainisru-(Appendix E) ४, दर्शनसार, गाया ३४ तया ३६
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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