SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन परिचय । कहीं भी कथन नहीं किया है। दूसरे उक्त लेख विक्रम की तेरहवी सदी के प्रारम्भ १२११ का है जिसमें विजय कीति का अमृतचन्द्र के शिष्य के रूप में उल्लेख है। उक्त समय मलवारीमाधवचंद्र ने. शिष्य भटारखा अमृतचन्द्र का अवश्य है परन्तु प्रकृति प्राचार्य अमृतचन्द्र का नहीं । उनका समय तो दसवीं विक्रम सदी है । अतः प्रकृत अमृतचन्द्राचार्य के पुग्नाटसंघी होने के कोई भी प्रमाण नहीं हैं। काष्ठासंघ तथा श्रमतचन्द्र- वर्तमान प्राचार्य विद्यासागर ने अमृतचंद्रसुरि कृत समयसारकलशों के अाधार पर 'मिजान'' एनं "कलशागीत" नाम से हिन्दी पद्यानुवाद किया है। "निजामृतपान" पद्यानुवाद की प्रस्तावना चेतना के गहराव शीर्षक के अन्तर्गत आचार्य अमृतचंद्र को काष्ठासंबी लिखा है। उक्त मान्यता की पुष्टि हेतु उनका तर्क है कि अमृतचन्द्र ने प्रवचनसार की चूलिका में १०-१२ गाथानों की टीका नहीं लिखी जबकि उनके परवर्ती जयसेनाचार्य ने टीका लिखी है। उक्त गाथाओं में स्त्रीमुक्ति निषेध का प्रसंग इष्ट नहीं था। दूसरे अमृतचन्द्र कृत टीका के अन्त में काष्ठासंघ की परम्परा का ज्ञान कराया है इसलिए जयसेन मूलसंघ के तथा अमृतचन्द्र काष्ठासंघ के सिद्ध होते हैं। उपयुक्त मान्यता एकदम नवीन कल्पना प्रतीत होती है क्योंकि प्रथम तो काष्ठासंधी भी मूलसंघो की भांति स्त्री मुक्ति को स्वीकार नहीं करते हैं । यदि स्त्रीमुक्ति मानना काष्ठासंघ की मान्यता होतो तो यह प्रारोप कि "अमृतचन्द्र को स्त्रीमुक्ति निषेध प्रसंग इष्ट नहीं था इसलिए काष्ठासंघी थे" विचारणीय होता। दूसरे आचार्य अमृतवन्द्र ने काष्ठासंघ की किसी भी मान्यता का कहीं भी किसी ग्रन्थ में पोषण नहीं किया है जिससे उन्हें काष्ठासंघी कहा जाता। तीसरे, काष्ठासंघ की गुर्वावलि में भी अमृतचन्द्र का कहीं नामोल्लेख नहीं है। चौथे रायचंद्र जैन शास्त्र १. निजाम नपान, पाट २. वही, पृष्ट ३. काप्यासंघ की प्रमुख मान्यताएं हैं- गाय की पूछ बी पिच्छि रखना, स्त्रियों को दीक्षा दना, शुल्लकों को वीरचर्या का विधान करना. मुनियों को कड़े बालों को पिछि रखने का उपदेश. रात्रिभोजन त्याग नामक छठवां गुणवत (अरात्रत) मानना, स्त्रीमुकि निषेच, सर्वस्त्रमुक्ति निषेध तथा वनीमुक्ति का निषेध करना इत्यादि । (दपेनमार नाथा नं. ३४, ३५, ३६) * An Pritome of Jainism by Pooranchand Nabar and Krithachand Ghosh (Scc Appendix D) Publisbed by H. Duby Gulab Kumar Library, 45 Indian Mirror Street, Calcutta- 1917.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy