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________________ जीवन परिचय ] अमृतचन्द्र को "मुनीन्द्र" शब्द से संबोधित किया है। नत्वार्थसार के हिन्दी टोकाकार, पं. पन्नालाल साहित्याचार्य ने तो अमृतचन्द्र को सरि हो नहीं, "महासरि तथा नानानयविशारद लिखकर उनको गरिमा तथा महिमा को दायिा है। इस प्रकार आचार्य अमतचन्द्र अत्यंत उच्च पद पर प्रतिष्ठित तथा असाधारण व्यक्तित्व से सुशोभित थे । अमृतचन्द्र का कुल अनेकांत स्वरूप आनंदामन का पान करने वाले, परमानन्द रूप अमृत रस के पिपासुओं को अध्यात्मामृत का पान कराने वाले, भव्यजीवों के हितकारी आत्रायं अमृतचन्द्र ने कहीं भी अपनी कृतियों में अपना लौकिक धरिचय नहीं दिया है। अलौकिक, निस्पृह जीवन जीने वाले आचार्य को लौकिक माता पिता, जन्मस्थान, कुल, गृरु आदि लौकिक परिचय से प्रयोजन ही क्या था, इसलिए उनके कुल-गण-संघ प्रादि के सम्बन्ध में परिचय प्रस्तुत करने वाली सामग्री तथा माधनों की, बहत कमी है, फिर भी इस सम्बन्ध में आ. अमतचन्द्र के पर बनी टीकाकारों तथा लेखकों के आधार पर प्रकाश डाला जा ठाकुर कुल-पं. प्राशाधरजी ने अपनी अनगारधर्मामृत की टोका में "एनच्च विस्तरेण सनकूरामतचन्द्रसरि विरचित समयसार टीकाया द्रष्टव्यम्" वाक्य का प्रयोग किया हैं । इस में अमृतचन्द्रसूरि को "उक्कुर" शब्द का प्रयोग किया है । यह ठक्कुर शब्द हिन्दी में ठाकुर पद का वाचक " तथा सम्मानित कुल का द्योतक है । इससे झात होता है कि आ. अमृतचन्द्र किसी कुलीन घराने से सम्बन्धित थे। संभव है ये 'ठाकुर. वंश' के हों। डॉ. लालबहादुर शास्त्री ने एक नवीन कल्पना की है कि १. 'अमनचन्द्र मुनीन्द्रवात अथ श्रावकाचार, अध्यातममी महा प्रायः छंद ___मार।"पु. सि.. दौलतराम , अंतिमप्रशस्ति पृष्ठ १६५ २. नन्नार्थसार, टीकाकारकृत अंतिमप्रशस्ति पृष्ठ २१२ ''अम तन्दु महामुरिनाना नयविशादः" ३. प्रवचनसार, तत्त्वप्रदीपिका टाका, मंगलाचरण पद्य *. ३ ४. अनगार धर्माम त टीका, 'पृय ५८८ ५. जैन साहित्य का इतिहास, भाग २. पृष्ट १७३ पं. बलाश चन्द्र शास्त्री ६. तीर्थकर महावीर तथा उनको याचार्य परम्परा, भाग २. पृष्ठ ४०३
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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