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[ प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व "व्याख्याता" पद प्राचार्य अमृतचन्द्र के सफलतम, प्रौढ़तम एवं कुशलतम व्याख्याकार अथवा भाष्यकार होने की घोषणा करता है। वे कुन्दकुन्दाचार्य के कलिकाल सर्वज्ञतल्य, अर्थगांभीर्ययक्त सूत्रों का गूढ़तम अद्घिाटन तथा मर्म प्रकट करने के लिए कलिकालगणधर तुल्य व्याख्याकार थे । इसीलिए कुछ विद्वानों ने कुन्दकुन्द को कलिकालसर्वज्ञ' तथा अमृचन्द्र को कलिकालगण घर' कहकर उनके महत्त्व एवं व्यक्तित्व को व्यक्त किया है अतः व्याख्याता पद अमृतचद्रसूरि को ही उपयुक्त एवं शोभास्पद प्रतीत होता है।
कवीन्द्र" विशेषण उनके सिद्धहस्त तथा लब्धप्रतिष्ठ कवि श्रेष्ठ होने का परिचायक है। उनकी कृतियों में गंभीरतम एवं प्रौढ़तम कवित्व छलकता है। भाषा, अलंकार लथा छंद, आत्मान भूति की प्रबलता तथा भावाभिव्यक्ति की तीव्रता में सहज ही प्रस्फुटित हो गये हैं। प्राभूतत्रय टीकयों में, विशेषतः समयसार की प्रात्मख्याति टीका में भावाभिव्यक्ति की तीव्रता के कारण ही गद्य धारा कहीं कहीं पयवारा का रूप धारण करती है। "लघत्त्वस्फोट" काव्य में उनकी कविप्रतिभा का चरमोत्कर्ष देखते ही बनता है अतः उक्त कवीन्द्र पद भी अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व का समुचित प्रकाशक है। रावजी नेमचन्द शहा ने आचार्य अमृतचन्द्र को कवीन्द्र ही नहीं बल्कि 'अल मुखकवोन्द्र" कहा है।
प्रा. अमृतचन्द्र की स्वरचित कृतियों में प्राप्त उपयुक्त पदों के अतिरिक्त, उनके परवर्ती आचार्यों, विद्वानों तथा टीकाकारों ने भी अमृत चन्द्र को यतीश, अध्यात्ममातंगड मुनि, मुनिराज, ठक्कुर आदि अनेक विशेषणों से विभूषित किया है जिससे अमृतचंद्र के बहुमुखो व्यक्तित्व पर स्पष्टत: प्रकाश पड़ता है। हिन्दो टीकाकार पं. दौलतराम ने
१. "कलिकालसर्वजन विचिने षट्प्राभूत न थे......." | मष्टपाहुड श्रुतसागर
मुरिकृत दीका पृष्ठ ५६४ २. पुरुषार्थ मिजबुताय (मराठी अनुवादक अज्ञात) प्रथमायत्ति, १९२८ ई. के
मुखपृष्ठ पर 'मूललेखक कलिकाल गणधर श्रीमदमृतचन्द्रमूरि" शब्दो का
उल्लेख है। ३. पुरुषाध सिद्धयुपाय (मराठा अनुवाद) प्रस्तावना पृष्ठ १२ ४. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, पंचादक, विद्याकुमार सेठी, (शुभार्शीर्वाद)