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जीवन परिचय ]
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आचार्य श्रमतचन्द्र का पद एवं व्यक्तित्व प्रकृत अमृतचन्द्र "प्राचार्य" पद पर प्रतिष्ठित, एवं प्रख्यात रहे हैं । आचार्य पद उनके गौरवपूर्ण पद एवं व्यक्तित्व का द्योतक है। श्रमणपरम्परा या जनदर्शन में पांच पद सर्वश्रेष्ठ माने गये है। वे हे अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साथ । इन पांचो को "पंचपरमेष्ठी" पद से जाना जाता है। प्राचार्य पद साधु और उपाध्याय पदों से भी अधिक गौरवशाली, महत्त्वपूर्ण तथा उच्चतर माध्यात्मिक विकास का प्रतीक है । अमृतचन्द्र का व्यक्तित्व इतना महान था कि प्राचार्य के अतिरिक्त अन्य अनेक पदवियों से भी वे सुशोभित थे । जिनमें से सरि, व्याख्याता, कवीन्द्र इत्यादि पदवियों का उल्लेख तो स्वयं अमृतचन्द्र द्वारा उनको ही कृतियों में प्रसंगोपात्त सहज हुआ है।।
"सरि" पद का प्रयोग दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों जैन सम्प्रदायों में अपने विशेष प्रभावशाली गुरुओं (साघु तथा पाचायों) के नाम के अंत में प्रयत्तः होता रहा है। दिगम्बरों में भट्टारकों के नाम के अंत . में भी सूरि पद का प्रयोग मिलता है। श्रतसागर भद्रारक के नाम के साथ उक्त सूरि पद का प्रयोग हुआ है। उन्होंने अपने को श्रुतसागरसूरि नाम से प्रकट किया है। जैन श्वेताम्बर आचार्यों के नामांत में "सूरि" पद का प्रयोग विशेष प्रचलित रहा है। डॉ. पी. एल. वैद्य ने उक्त बात का उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचार्य अमृतचन्द्र दिगम्बरों में तो लब्धप्रतिष्ठ थे ही, साथ ही श्वेताम्बरों तथा भद्रारकों के बीच भी उनका प्रभाव था । यही कारण है कि आचार्य प्रमतचन्द्र की अद्यावधि प्रज्ञात, असाधारण कृति अहमदाबद के श्वेताम्बर जैन मन्दिर के डेलाशास्त्रमण्डार में श्वेताम्बर मुनि पुण्यविजय जी को प्राप्त हुई है। उक्त कृति ताड़पत्रों पर अंकित हैं। कृति का नाम "लधुतत्त्वस्फोटः" अपरनाम 'शक्तिमणित कोश' है।
१. अष्टपाहुड़, श्रुतसागरसूरि चुत मंस्कृत टीका, संपादक पं. पन्नालाल जी,
प्रस्तावना पाठ १४ ''यहाँ पर बलसागर ने अपने को सुरि तो लिखा है, परन्तु यहाँ सूरि का अर्ध दिगम्बर याचार्य नहीं है अपितु भदटारक हैं क्योंकि
श्रुतसागर स्वयं भटदारक थे।" २. "दिगम्बर थी अपने मुध्य साधुओं को 'भट्टारक" नाम से पुकारते थे और
श्वेताम्बर उसके बदले "सूर" शब्द का प्रयोग करते थे।" जैन धर्म प्रारिंग
वाल मथ, डॉ. परशुराम लक्ष्मण वैद्य-पृष्ट ५७ ३. प्रा, शांतिसागरजी जन्माताबिद स्मृतिनथ, द्वितीय भाग पृष्ठ २२३ डॉ.
पदमनाम श्रीवर्मा जैनी प्रोफेसर कैलीफोनिया पूनिसिटी, यू. एस. ए. का "श्री जिननामावलि' शीर्षक लेखे ।