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________________ ५६ ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर्यायवाची हैं तथा विधु, इन्दु, तथा चन्द ये 'चन्द्र" पद के बाचक होने से प्रकृत्त प्राचार्य का वास्तविक नाम "अमृतचन्द्र" ही प्रमाणित होता है। साथ ही वे आचार्य पद से विभूषित होने से "आचार्यअमृतचन्द्र" कहलाते हैं। प्रकृत अमृतचन्द्र से भिन्न अमृतचन्द्र नामधारी मारक- प्रकृत आचार्य अमृतचन्द्र से भिन्न "अमृतचन्द्र" नामधारी एक भट्टारक भी हुए हैं ! इन भट्टारक अमृत चन्द्र के गुरु (वि. बारहवीं शती के) मलधारी माधवचन्द्र थे । वे विहार करते हुए बांभणवाड़ा नामक नगर में पाये थे, जिनकी प्रेरणा से कविवर सिंह (सिद्धकधि) ने "पज्जपणचरिऊ" (प्रदुम्नचरित) काव्य की रचना की थी।' इस बात की पुष्टि ५० परमानन्द शास्त्री ने भी की है। वे लिखते हैं कि कविवर सिंह के गुरु मुनिपुगव, भट्टारका अनृसचन्द्र थे, जो तप-तारूपी दिवाकर और व्रत नियम तथा शोल के रत्नाकर थे। प्रस्तुत भट्टारक अमृतचन्द्र उन प्राचार्य अमृतचन्द्र से भिन्न हैं जो कुन्दकुन्दाचार्य के समय सारादि प्राभतश्य के संस्कृत टीकाकार हैं और पुरुषार्थ सिद्धयुपाय आदि ग्रन्थों के रचयिता हैं। वे लोक में ठक्कूर उपनाम से प्रसिद्ध रहे हैं। पं. मुन्नालाल राघेलीय', न. गुलाबचन्द तथा न. पंडिता सुमतिबाई शहाँ ने भट्टारक अमृतचन्द्र को हो कुन्दकुन्द के टीकाकार (प्रकृत) अमृतचन्द्र माना है जो उपयुक्त प्रमाणों से असिद्ध है। हमारे आलोच्य आचार्य अमृतचन्द्र तथा मलघारीमाधवचंद्र के शिष्य भट्टारक अमृतचन्द्र में भिन्नता है। प्रकृत आचार्य अमृतचन्द्र कुन्दकुन्द्राचार्य के प्राभूतत्रय (समयसार, प्रवचनसार एवं पंचास्तिकाय ग्रन्यों) के असाधारण, अद्वितीय एवं सर्वप्रथम टीकाकार हुए हैं जिन्होंने प्रत्येक टीका के अन्त में अपने लिये "स्वरूपगुप्त अमृतचन्द्र'' ६ लिखा है। १. जनसाहित्य और इतिहास, द्वितीय संरकरण. पं, नाथूरामप्रेमी, पृष्ठ ३१० २. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग-२, पृष्ठ ३४९ तथा जन ग्रन्थ शस्ति संग्रह 'भाग-२. प्रस्तावना पृष्ठ ७४ ३. पुरुषार्थ मिन युपाय, भावग्रकाशिनी टीवा प्र. पृष्ठ १० ४. सम्मतिमन्देश, वर्ष १३, अंक ८, अगस्त १९६८, पृष्ठ २७ ५. पूर्णार्य जिनज्ञानकोश), वीर निर्वाण सम्बत २५०४, पृष्ठ २०० ६. "स्वरूपगुप्तस्य न किंचिदस्ति, कर्तव्यमेवामृत चन्द्र सूरेः ।" समयसार (पाल्म ख्याति कलश टीका), प्रवचनसार (तत्त्वप्रदीपिका टीक) तथा पंपास्तिकाय (ममयच्याझ्या टोका का अन्तिम पद्य) ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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