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________________ उन्होंने कोई नाटक नहीं लिखा; पर उन्होंने प्रात्मख्याति को नाटकीयता का रूप अवश्य प्रदान किया है। एक अध्यात्मग्रन्थ की दीका में नाटकीय तत्त्वों का समावेश करके उन्होंने उसे एक ऐसी रोचकता प्रदान कर दी है, जो पाठकों को सहज ही आकर्षित करती है। यही कारण है कि कविवर पण्डित बनारसीदासजी ने अपने पद्यानुवाद का नाम ही 'समयसार नाटक' रखा है। आचार्य कुन्दकुन्द की जिन-अध्यात्म परम्परा को पागे बढ़ाने का परमश्रेय तो आपको है हो, आधस्तुतिकार प्राचार्य समन्तभद्र की स्तोत्र परंपरा को भी उसी रूप में पल्लवित करने का श्रेय भी ग्रायको ही है। क्योंकि प्रापका 'लघुतत्त्वस्फोट' नामक स्तोत्र भी उसी शैली में लिखा गया है, जिस शैली में प्राचार्य समन्तभद्र के स्तोत्र पाये जाते हैं । २५-२५ छन्दों के २५ अधिकारों में विभक्त, शार्दूलविक्रीड़ित एवं मन्दाक्रान्ता जैसे बड़े-बड़े तेरह प्रकार के ६२६ छन्दों में लिखा गया यह स्तोत्र अपने प्राकार-प्रकार में तो अद्वितीय है ही, भावपक्ष और कलापक्ष की सम्पूर्ण विशेषताओं से भी मण्डित है। इसके प्रथम अधिकार में २४ तीर्थकरों की स्तुति है । आगे के २४ अधिकारों में सामान्य रूप से जिनेन्द्रबन्दना के माध्यम से जिन-सिद्धान्तों का युक्तिपुरस्सर निरूपण है। भावानुरूप छन्दों एवं अलंकृत भाषा में निबद्ध यह स्त्रोत जिन-सिद्धान्त और जन-न्याय का अनमोल खजाना है, जो माद्यन्त मूलतः पठनीय है। प्राद्यस्तुतिकार आचार्यसमन्तभद्र के स्तोत्रों में न्यायशास्त्र भरा पड़ा पड़ा है । वस्तुतः बात तो यह है कि जन-न्याय का उद्गम स्थल ही प्राचार्य समंतभद्र के स्तोत्र हैं, जिन्हें आधार बनाकर आगे चलकर प्राचार्य अकलंक और प्राचार्य विद्यानन्दी ने जैन-न्याय का अभेद्य गढ़ तैयार किया। यद्यपि यह ध्रुव सत्य है कि कलंक और विद्यानन्दी ने समन्तभद्र के देवागमस्तोत्र पर वत्ति और भाष्य लिखे, पर समन्तभद्र की शैली में स्तोत्र लिखने वाले सर्वप्रमुख प्राचार्य अमृतचन्द्र ही हैं। अमृतचन्द्र को छोड़कर अन्य किसी में यह साहस देखन में नहीं पाया कि समन्तभद्र से स्तोत्रों की रचना करे। _ यह बात भी नहीं है कि प्राचार्य अमृतचन्द्र अध्यात्म गंगा में ही डुबकियां लगाते रहे हों या न्याय-शास्त्र के दीहड़ों में ही भटकते रहे हों,
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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