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जीवन परिचय ]
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इस प्रकार आचार्य अमृतचन्द्र ने अपनी व्यवस्थित मति द्वारा अपना अलौकिक एवं व्यवस्थित परिचय दिया है। उन्होंने अपने ग्रन्थों मेंअपना अलौकिक परिचा तो गम व दिर है परन्तु लौकिक परिचय के विषय में वे सर्वत्र मौन ही रहे हैं फिर भी यहां उनके लौकिक जीवन का भी ग्रथमम्भव परिचय कराया जाता है ।
लौकिक जीवन परिचय नामोल्लेख स्वयं द्वारा -- प्राचार्य अमृतचन्द्र 'अमृत चन्द्रमूरि' नाम से ही विख्यात थे, यह बात उनकी ही टीकाओं तथा अन्य कृतियों से ज्ञात होता है। समयमार की आत्मख्याति', प्रवचनसार को तत्त्वप्रदीपिका', पंचास्तिकाय की समयव्याख्या नामक टीकाओं तथा नधुतत्त्वस्फोट नामक कृति के अन्त में अमृतचन्द्रसरि नाम का प्रयोग मिलता है। तत्वप्रदीपिका में उनके उक्त नाम के पूर्व व्याख्याता तथा लघुतत्त्वस्फोटः में उनके नाम के पश्चात् कबोन्द्र विशेषण भी प्रयुक्त है जिनसे उनके विख्यात व्यक्तित्व की झलक भी मिलती है।
नामोल्लेख परवर्ती लेखकों द्वारा -- उनके उक्त नाम का उल्लेख अमृतचन्द्र के परवर्ती आचार्यो, भट्टारकों तथा विद्वानों ने विभिन्न विशेषणों के साथ किया है। कुछ विद्वानों ने उनके पर्यायवाची नामों का प्रयोग किया हैं। आचार्य पदमप्रभमलधारी देव ने तो नियमसार की
१. स्वरूपगुप्तस्य न निदस्ति, कर्नव्यमवाऽमृतचन्द्रसूरेः । समयसार कलम, २७८ २ याच्यातामनचन्द्रमुरिरिति मा मोहाज्जनों बल्गनु ।' प्रवचनसार नवनदी
पिका दीका प नं० २१ पृष्ठ ५३४, (वी. सत्माहित्य प्रसारक ट्रस्ट भावनगर,
वि. सं. २०३२, तृतीयावृत्ति) ३. "इनि श्री पंचास्तिकापव्याख्यायां थीमदमृतचन्द्रभूरिविरचितायां "...द्वितीय
स्कंधः समाप्तः।" (चास्तिकाय ममय व्याख्या टीका, पष्ठ २५५ बम्बई-द्वितीय
संस्वारगा १६०४ ई.) तथा प्रतिम पद्य नं. ८ "कर्तव मेनाऽमृतचन्द्रसूरेः' ४. "मे भावयन्ति विकलार्थवती जिनानां नामावलीमपृतचन्द्रचिदेकपीताम् ।'
लय तन्यस्फोट, पद्य २५ ५. प्रवचनसार, तत्वप्रदीपिका टीका पद्य नं. २१, पूर ५३४ ६. "आस्वादयत्वमृतचन्द्रकवीन्द्र एवं"........' (ला तत्त्वस्फोटः, अध्याय २५,
पञ्च २४)