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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्त्व
मुनि रामसिंह ने "दोहापाड़" अपरनाम "पाहुड़दोहा' नामक ग्रंथ रचना की। उममें देवसेनकृत सावयधम्मदोहा के क्रमांक ३० तथा १२६ वें पद्यों को उद्धृत किया है । देवसेन का समय विक्रम संवत १५० से १००० के बीच का है। मुनिरामसिह के दोहापाहुड से एक गाथा नं. ६८ अमृत चन्द्र ने अपनी पंचास्तिकाय टीका में गाथा १४६ की व्याख्या में "तथा चोक्तम्" शब्द के साथ उद्धत की है। इससे सिद्ध होता है कि देवसेन के पश्चात् रामसिंह तथा रामसिंह के बाद आचार्य अमृतचन्द्र हुए । अतः अमतचन्द्र का समय दसवीं विक्रम सदी का उत्तरार्ध या ग्यारहवीं विक्रम सदी का प्रारंभ माना जा सकता है। इसकी पुष्टि पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के लेख से भी होती है।
शौचाल पुत्र दिइव के संस्थत , पंजसंग्रह पंथ की रचना की। अमितगति आचार्य (१०५०-१०७८ विक्रम संवत् ) ने भी संस्कृत में पंचसंग्रह ग्रंथ रचा । इनकी रचना विक्रम संवत् १०७३ में पूर्ण हुई थी। डड् ढा अमितगति से पूर्व के विद्वान् हैं प्रतः उनका समय १०५५ विक्रम माना गया है। डड्ढा ने अपने पंचसंग्रह के प्रकृतिसमुत्कोर्तन अधिकार में (पृष्ठ ६७४ पर) उक्तञ्च" रूप में एक श्लोक उद्धत किया है जो अमृतचन्द्र के तत्त्वार्थसार के बन्धाधिकार का ग्यारहवां श्लोक है। इससे स्पष्ट है कि हुड्ढा के समय में अमृतचन्द्र का तत्त्वार्थसार विद्यमान था अतः उससे भी लगभग अर्धशताब्दी पूर्व अमृतचन्द्र हुए, इसलिए उनका समय विक्रम की दसवीं सदी का उत्तराई निश्चित होता है।
सोमदेव ने "यशस्तिलक" नामक चम्पुकाध्य की रचना विक्रम संवत् ११६ में की, इसकी जानकारी ग्रंथ के अन्त में प्रदत्त प्रशस्ति से प्राप्त होती है । पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री ने एक लेख द्वारा यह प्रकट
१. जैन नाहित्य का इतिहास, भाग २, पृष्ठ १५३ २. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग २, पृष्ट ४४६. ३. जैन संदेश, शोधांक नं० ५, पृष्ठ १८० (२२ अक्टूबर १६५६). ४. राजस्थान का जैन साहित्य, पृष्ठ १७-६८ ५. जैन संदेश, शोघांक २६ पृ. ६५ (२६ फरवरी, ६८) लेख-. कैलाशचन्द्र शास्त्री ६. जैन गंदेश, शोधांक ३२, पृष्ठ ३३४ तथा यशस्तिलक चम्पुमहाकाव्य उत्तरार्घ
पृष्ठ १८१ ७. जैन संदेश, शोधांक १६, पष्ठ १८१