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। भाचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अमृतचन्द्र विद्यमान रहे होंग, इस प्राधार पर भी आचार्य अमृतचन्द्र का काल विक्रम की तेरहवीं सदी का पूर्वार्ध या उत्तरार्ध माना जा सकता है। डा. ए. एन. उपाध्ये ने भी प्रवचनसार की प्रस्तावना में उक्त अनमान की पुष्टि की है।'
आचार्य रामसेन कृत तत्त्वानशासन नामक ग्रन्थ का उपयोग पं० आशाधरजी ने अपने ग्रन्थ इष्टोपदेश की टीका में किया है । कहींकहीं रामसेनाचार्य के नामोल्लेख के साथ ही तत्त्वानशासन के कई पद्यों का उल्लेख भी किया है। प० पाशाधरजो इष्टोपदेश के टीकाकार हुएइसका उल्लेख उन्होंने स्वयं विक्रम संवत् १२८५ में लिखित 'जिनयज्ञकल्प' की प्रशस्ति में किया है । इससे रामसेन के तत्वानशासन की विद्यमानता वि० सं० १२८५ के पूर्व सिद्ध होती है ।' तत्त्वानुशासन पर प्राचार्य अमृतचन्द्र के तत्त्वार्थसार तथा समयसार आदि टीकाओं का प्रभाव दिखाई देता है। रामसेन ने अमृतचन्द्र की युक्तिपुरस्सर शैली, निश्चय. व्यवहार कथनशैली तथा तात्विकता का अनुसरण भी किया है। उदाहरणार्थ--निश्चय-व्यवहार के भेद से मोक्षमार्ग का दो प्रकार से निरूपण तथा उनमें साध्य साधनता स्पष्ट करने हेतु अमृतचन्द्र ने जिन शब्दों द्वारा अभिव्यक्ति की है, लगभग उन्हीं शब्दों को रामसेन' ने भी अपनाया है - यथा
"निश्चयव्यवहाराभ्यां मोक्षमागों द्विधास्मृतः ।" तबाऽद्यः साध्यरूपः स्याद द्वितीयस्तस्य साधनम् ।।
॥२॥ "तत्त्वार्थसार" उपसंहार, || मोक्ष हेतुपु नधा निश्चयाद् व्यवहारतः । तत्राऽऽयः साध्य रूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ।।
॥२॥ "तत्त्वानुशासन", ॥ इसी प्रकार तत्त्वार्थसार के पद्य क्र. ७ तथा + और समयसार कलश २१० के आधार पर किचित् शाब्दिक परिवर्तन कर तत्त्वानशासन
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१, प्रवचनसार, प्रस्तावना (अंग्रेजी में) पृष्ठ ६६ २. तत्त्वानुशासन, प्र० पृष्ठ १७ लेखक पण्डित जुगन किशोर मुस्तार, प्रकाशन
सं. २०२० ३. तत्वानुशासन, प्र० पृष्ठ ३३