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द्वितीय अध्याय
जीवन परिचय समय
आध्यात्मिक विद्वानों में भगवत् कुन्दकुन्दाचार्य के बाद यदि किसी का नाम लिया जा सकता है, तो ये हैं आचार्य अमृतचन्द्र। आलौकिक तथा आध्यात्मिक जीवन जीने वाले प्राचार्य अमृतचन्द्र ने अपने सम्बन्ध में कहीं कुछ भी लौकिक परिचय नहीं दिया है, जिससे कि उनके समय आदि का ज्ञान किया जा सके। उन्होंने अपनी समस्त कृतियों में अपने निलिप्त स्वभाव को ही प्रकट किया है, इसीलिए विद्वानों को उनके समय को निर्णीत करने में असुविधा होती रही है। यहाँ पर अद्यावधि उपलब्ध विभिन्न स्रोतों के आधार पर आचार्य अमृतचन्द्र के समय का निर्धारण किया जा रहा है।
विक्रम संवत् १२०० में पंडित आशाधरजी ने "अनगारधर्मामृत" नामक अपने ग्रन्थ पर एक "भव्यकूमदचन्द्रिका" नाम की टीका रची।' इसमें पं० आशाधरजी ने आचार्य अमृतचन्द्र के नाम का उल्लेख किया है। साथ ही उन्हें "ठक्कूर" पद से विभूषित भी किया है। उक्त टीका में पं० आशाघरजी ने प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत समयसार कलश के १४ कलश, पुरुषार्थसिद्धयपाय के १६ पद्य, तत्त्वार्थसार का एक
१. शैनसाहित्य और इतिहास, पं. नाथूराम "प्रेमी", संस्करण प्रथम, १९४२
पृष्ठ ४५८ २. अनगार थर्मामृत, पं० प्राशायर ए० (५८८) "एतच्च विस्तरेण ठक्कुरामृत
चन्द्रविरचित समवसार टीकामां द्रष्टव्यम् ।" तथा पृ० १६० पर । 'एतदनुसारेणैव ठक्कुरोऽपीदम्पाटोत्" लिखकर--अमुत्तचन्द्र के पुरषार्थसियुपाय का "लोक शास्त्राभासे..........."प्रादि पद्य उद्धृत किया है । ३. "ममयसार कलश" क्र. २४, ११०, १११, १३१, १६४, २०५, २२४, २२५,
२२६, २२७, २२८, २२६, २३० तथा २३१ (कुल १४ कालश)। ४. पुरुषार्थसिद्धयुपाय के पद्य क्र० २६ से ३० तक, ३२, ३३, ३४ ४२, ४८, ४६,
६६, १११ से ११४ तकः, २११, २२० तथा २२५ (कुल १६ पद्य) ।