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पूर्व साहित्यिक परिस्थितियाँ ।
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को कठिन समय का सामना करना पड़ा । कठिनाई के कारणों में ब्राह्मणों के कई सम्प्रदायों की प्रतिद्वन्दता भी एक है । इस प्रतिद्वन्दता ने जैन सन्तों की अध्ययन सम्बन्धि परम्पराओं (आदतों) को अस्थाया तोर से पाछे ढकेल दिया । उक्त अत्याचार एवं मातंकपूर्ण लहर घीरे धीरे विभिन्न प्रदेशों में फैलने लगी।
ईस्वी छठवीं-सातवीं सदी में ही तमिलदेश में; विशेषतः पाण्यराज्य में जैनों का बड़ा भारी राजनैतिक प्रभाव था। कल भ्रों के प्राक्रमण से लेकर सुन्दरपांड्य के धर्म परिवर्तन काल तक जैन लोग राज्य की राजनीति के सूत्रधार थे। वे वैदिक धर्म का कठोरता से विरोध करते थे। इसने शीघ्र ही प्रतिक्रिया का रूप धारण कर लिया। इसलिए सुन्दरपाण्ड्य का धर्मपरिवर्तन मदुरा राज्य के धार्मिक इतिहास में केवल प्रासंगिक घटना नहीं थी, बल्कि वह एक राजनैतिक क्रांति थी और उसका लाभ ब्राह्मण संत सम्बन्दर ने खूब उडाया, जिसके फलस्वरूप हजारों जनो को शंब बनाया गया और जिन्होंने अपनी कट्टरतावश शैव धर्म स्वीकार नहीं किया उन्हें देश से निकाल दिया गया । उसकी प्रेरणा से आठ हजार जैनों को कोल्ह में पेल दिया गया, वे सभी जैनधर्म के मात्र अनुयायो ही नहीं, अपितु मुखिया थे। सम्बन्दर ने कुछ भजन लिखे जिनमें अविचारी जनता को जैनों के विरुद्ध भड़काया गया, उन्हें गाली तथा अपशब्दों का प्रयोग किया गया. उनको बुरे रूप में चित्रित किया गया। श्री रामस्वामी आयंगर ने अपनी पुस्तक "स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनिज्म' में लिखा है कि यह सभी जानते हैं कि गालियां कोई युक्तियां नहीं हैं और सम्बन्दर के भजनों में गालियों के सिवाय और कुछ भी नहीं है । इससे हमें बलात हो निष्कर्ष निकालना पड़ता है कि सम्बन्दर तथा उसके साथी अप्पर ने जैनों को पराजित करने के जो जो ढंग अपनाये वे केवल असभ्य ही नहीं थे किन्त ऋर भी थे । सम्बन्दर पहले जैन था, पश्चात उसने जैनधर्म का परित्याग करके शवधर्म को अपनाया। उसने नेन्दुमारन को भी शेव बना लिया।
9. As in the case of northern India, in the sourb also, with the waves of
Muslim aegression under Malik -Kafur, Jain Monks Suced hard dark days. added to wbicb way the rivalary of numerous Brabmanical scats whicli possibly gave a temporary set back to the stucious liebits of Jaine monks. "The History of Jain Monachison from Inscriptions and Literature.
(S. B. Dev) page. 453. २. दक्षिण भारत में जैनधर्म, पृष्ट २२