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________________ पूर्व साहित्यिक परिस्थितियां ] । २७ पश्चिमी भारत, गुजरात एवं राजपूताना जैनधर्म के प्रमुख केन्द्र थे ।' ई. पूर्व २२० में सम्प्रतिमौर्य ने भारत के विभिन्न प्रदेशों में जैनधर्म का प्रचार किया। उसके छोटे भाई शालीशुक ने भी सौराष्ट्र में जैन धर्म को फैलाने का श्रेय प्राप्त किया। इससे यह बात प्रमाणित होती है कि ई. पूर्व द्वितीय सदो के लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत में जनधर्म के अनयायी थे । सम्प्रतिमौर्य ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था, उस समय मालवा, मथुरा तथा मध्य भारत में जैनों का विशेष बर्चस्व था। इसके अतिरिक्त कलिंग, बंगाल में भी जैनधर्म का प्रभाव दिखाई देता था। पहारपुर ताम्रपत्र जो कि गुप्त काल संवत् १५६ तथा ईस्वी ४७८-७६ का है, इस बात का संकेत करता है कि दिगम्बरों का अस्तित्व बंगाल में था। एक लेख में नंदिसंघ के आचार्य गहनंदि का उल्लेख है। बंगाल के ही मैनामती ग्राम में ५०० ईस्वी की तोयंकर की मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। चीनी यात्री ह नसांग जिसने सातवीं ई. में भारत की यात्रा की थी, ने लिखा है कि नग्न निथ मुनिराज उस समय अधिक संख्या में थे । इस प्रकार चीनी यात्री के विवरणों, पुरातत्त्व तथा जैन अनश्रतियों आदि अन्य ऐतिह्य साधनों से पता चलता है कि आठवीं सदी तक सम्पूर्ण कलिंग देश में जनधर्म की अच्छी स्थिति थी। कवि श्रोहर्ष के नषध चरित से विदित होता है कि आठवीं ई. सदी में सिन्ध में जैनधर्म अच्छो दशा में प्रचलित था । मूल्ताननगर तो मध्यकाल में भी इस प्रदेश में जनधर्म का प्रमुख केन्द्र बना रहा । गौड़ी पार्श्वनाथ को सुप्रसिद्ध मूर्ति से सम्बन्धित अनुश्र तियाँ भी प्राचीनकाल में सिन्ध में जैनधर्म के अस्तित्व का समर्थन करती हैं। इस तरह जहाँ एक ओर ई. सातवीं-पाठवीं सदी में भारतवर्ष के अधिकांश भागों में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार एवं प्रभाव अपने उत्कर्ष पर था, वहीं दूसरी और राजनीतिक राजाओं के सरक्षण एवं समर्थन में भयंकर, रोमांचकारी अत्याचारों का भी सूत्रपात हो चका था। राजाओं 9. We go 10 Western India and Gujrat, wo steall sce klic stale of Jainism under the powerful Gupta Eropire. It would be better for us Ly> treat Gujrat, Western India and Rajputana separaçly 15 they have longbon KILOW LO be uenires of Jainism (Hiytory of Jain Monachim trom Inscription Literature-Page 102.) २. वही, पृष्ठ ६७ ३. भारतीय इतिहास, एक दृष्टि, पृष्ट १६४ ४. वही, पृष्ट २१३
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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