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[ प्राचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व और कर्तृत्व
किसी भी देश अथवा समाज के साहित्य पर तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है। समाज में रहकर साहित्य साधना करने वाले विहानों पर राजनीतिक परिस्थितियों का प्रभाव यदि अधिकांश रूप में होता है तो वनवासी ऋषियों-मुनियों के साहित्य पर आंशिक रूप में, परन्तु प्रभाव अवश्य लक्षित होता है। भगवान महावीर के समय वैशाली का राजवंश गणतंत्र के रूप में था परन्तु राजगृहा का राजवंश राजतन्त्र के रूप में विद्यमान था। "महावीर की माता लिच्छवि गणतन्त्र के प्रधान चेटकरराजा की पुत्री थीं । ई० पूर्व छठवीं सदी में पूर्वीय भारत में लिच्छवि राजवंश अत्यन्त शक्तिशाली एवं महान् था । चम्मा के राजा कूणिक (अजातशत्र ई० पूर्व ५५२ से ५१८ के बीच) ने चेटक पर आक्रमण करने की तैयारी की नब चेटक ने काशी-कौशल आदि के १८ राजाओं को बुलाकर कुणिक के विपक्ष में समर्थन प्राप्त किया था । इससे पता चलता है कि भगवान् महावीर का राजघरानों पर गहरा प्रभाव था।' राजा श्रेणिक (ई० पूर्व ६०१-५५२), नन्दवंश ( ई० पूर्व ३०५), मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त (ई० पू० ३२०), सम्राट अशोक (ई० पू० २७७), सम्राट सम्पति (ई. पू० २२०), उड़ीसा में चक्रवर्ती खारवेल (ई० पू० १७४) आदि जैन धर्म के उपासक थे। इनके काल में जनधर्म काकी फला-फुला। प्रोफेसर रामस्वामी अयंगर ने लिखा है कि सुशिक्षित जैन साधु छोटे-छोटे समूह धनाकर दक्षिण भारत में फैल गये। उन्होंने दक्षिण की भाषाओं में साहित्य निर्माण कर जैनधर्म का प्रभाव वृद्धिगत किया। मेगस्थनीज के विवरण से पता चलता है कि ई० पूर्व चतुर्थ शताब्दी तक राजा लोग अपना दूत भेजकर वनवासी जैन श्रमणों से राजकीय मामलों में सलाह लिया करते थे। वे शताब्दियों तक जैन धर्म के प्रति साहिष्णु बने रहे । परन्तु जैनधर्म ग्रन्थों में रक्तपात के निषेध पर अधिक जोर दिये जाने से राजा लोग उनसे दूर हो गये, जिससे जनों का राजनीतिक पतन प्रारम्भ हो गया ।3 डॉ. एस. बी. देव ने इस बात का स्पष्टोल्लेख किया है कि शक्ति सम्पन्न गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत
१. जैनधर्म, पृष्ठ २४ २. वही, पृष्ठ २८, ३१, ३४, ३५ व ३६ ३. स्टडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म, पृष्ठ १०५-१०६