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________________ उपसंहार । [ ५०७ साहित्य में अनुपम निधि है। उक्त वर्णन तत्त्वाम्यासियों, मोक्षमार्गाभिलापियों एवं मोक्षमागियों - सभी के लिए अत्यन्त हितकारी एवं महत्त्वपूर्ण है। दसवें - पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में समस्त प्रकार के रागादि भावों की उत्पति को हिला तथा अनुत्पत्ति को दिया और पुण्यालय नो भोपयोग का अपराध कोषित करना अध्यात्म प्रवपा प्राचार्य अमृत चन्द्र की अध्यात्म दृष्टि का अनुपम नियंद है। 'ल तत्व स्फोट' नामक स्तोत्र काव्य द्वारा जैन दर्शन, अध्यात्म तथा भक्ति मार्ग को प्रदीप्त किया है। उक्त कृति प्राचार्य यमतचन्द्र को सैद्धांतिक विज्ञता, जिनेन्द्रनिष्टा तथा अध्यात्मरसिकता के चरमोत्कर्ष की प्रतीक है। संस्कृत वाङमय में प्रतीकात्मक नाटयशली तथा जम्पू काव्य-शैली का सफल प्रयोग भी अनुपम है। इस प्रवार प्राचार्य अमृतचन्द्र के बुछ वैशिष्ट्यों का यह संक्षेप है। २. अध्यात्मवाद के लिए प्राचार्य अमृतचन्द्र का योगदान : प्राचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की रचना होने के बाद यद्यपि प्राचार्य परम्परा में अध्यात्म का पर्याप्त हा से रसास्वादन हुमा। उसके प्राधार पर ही संमतभद्र. पुज्यपाद, ग्रकलंकदव, विद्यानदि, गुणभद्र यादि आचार्यों ने अध्यात्म का रहस्योद्घाटन किया है, तथापि उक्त रहस्योद्घाटन इस तरह सर्वजनगाहा तथा सुलभ नहीं हो सका जिससे कि प्रत्येक ममक्ष सहज रूप से कन्द के साहित्य में निरूपित अध्यात्म के गहन रहस्य को हृदयंगम कार मात्म-मयाणोन्मम्स हो सके । साहित्यिक पत्र में यह एक बहुत बड़ी कमी थी। प्राचार्य अमृतचन्द्र ने इस कमी का अनुभव किया तथा 'इम निकृष्ट पंचमकाल में भी प्रत्येक भव्य प्राणी अध्यात्म रस पीकर मोक्षमार्ग का निसरपा करने में समर्थ हो सके हम परम उदाल भावना को ध्यान रखकर ही उन्होने अन्दनन्द प्राभृतय समय सार. प्रवचनसार तथा पंचाग्नि काय पर सारगभित, भाषिक टीकाये लिखीं। इसके साथ ही तदनसंगी और भी मालिका साहित्य का निर्माण कर अध्यात्मवाद के क्षेत्र में अक्षुग्ण, अपूर्व और असाधारण योगदान दिया। जहां कलिकाल के प्रभाव से प्रज्ञानमयी मान्यतानों के मेधों से आच्छादित साहित्य-ग्राकाश में अध्यात्म के उपदादा खद्योतवत् टिमटिमाते थे.' वहां प्राचार्य प्रगृतचन्द्र अपन' चन्द्रोपम व्यक्तित्व के साथ प्राविर्भूत १. सागर धमामृत (पं. आषाधर) अ./१ पद्य नं. ७
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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