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। आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व हुए तथा उन्होंने अपनी कृतियों द्वारा अध्यात्म की शीतल शांति दायिनी चांदनी बिहेर कर पथ भ्रष्ट पथिकों को परम कल्याण का पथ प्रदर्शित किया। उनका व्यक्तित्व अध्यात्मवाद का ऐसा द्रह था जिससे उनकी कुतियों रूपी अध्यात्म तरंगिणी प्रवाहित हुई जो चिरकाल तक अध्यात्म वाद की धारा को इस धरा-धाम पर प्रवाहित करती रहेगी। यह प्राचार्य - अमृतचन्द्र का अध्यात्मवाद के लिए महान् योगदान है।
कुन्दकुन्दार्य ने जिम तत्त्व का प्रतिपादन बड़ी सरल रीति से किया है, आचार्य अमृतचन्द्र ने उसी का विवेचन अपने समय की पाण्डित्य पूर्ण दार्शनिक शैली में किया है। इस प्रकार उन्होंने कुन्दकुन्द द्वारा प्रतिपादित आध्यात्म को दार्शनिक शैली में अवतरित करके कुन्दकुन्द के पश्चात् विकास को प्राप्त हुए दार्शनिक मन्तव्यों को भी उसमें समन्वित करने की - चेष्टा की है। इतना ही नहीं, कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में जो तत्त्व निहित थे, किन्तु अस्पष्ट थे, उन्हें भी उन्होंने स्पष्ट करके जैन तत्त्वज्ञान को समृद्ध बनाया है।'
अध्यात्मबाद वह निर्विकल्प रमायन है जिसके सेवन से आत्मा अपने स्वानुभव रूप अात्म तेज से चमकने लगता है तथा आत्मा में अमृत धारा बहने लगती है। प्रात्मा परमानंद सागर में निमग्न होकर परम तृप्ति को प्राप्त करता है । कुन्दकुन्द ने उक्त उद्देश्य से ही अपने प्रात्मानुभव के वैभव से अध्यात्म रहस्यभत मन्थों का प्रणयन किया है । प्राचार्य अमृतचन्द्र ने अध्यात्म रसपूरित, परमानन्द की मस्ती में झूमले हुए अपनी टोकायें रची हैं। उन्होंने कुन्दकुन्द के अध्यात्म तथा आत्मानुभूति विषयक रहस्यों का उद्घाटन करके उसे सर्वसाधारण को भी सुलभ बनाया है, २
उन्होंने हिंसा को मोक्ष की कारणभूत परम रसायन लिखा है।' साथ ही इस अहिंसा तत्व को नयद्दष्टि द्वारा समझने की अनोखी दृष्टि प्रदान की है।
इसी तरह आत्मख्याति टीका के अन्त में परिशिष्ट रूप में स्याद्वाद अधिकार तथा उपाय-उपेय अधिकार जोड़ कर जैन अध्यात्म को समझने की कुन्जी प्रदान की है। जिससे अध्यात्म का संदेश घर घर फैला है।
१. ज. सा. का ति पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री) पृ. १७६ २. श्री कुन्दकुन्दाचार्य का जीवन परिचर-संग्राहक न. यवानन्द, पृ. ६ रो तक ३. पु. सि. ७८ (कापी नं. २ पृ. ६३) ४. आ. शांतिसागर जन्मशताब्दि स्मृति ग्रन्थ पृ. ३५ (प्रारम्भिक)