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________________ अष्टम अध्याय उपसंहार १. प्राचार्य अमृतचन्द्र का वैशिष्टय : ___प्राचार्य अमृतचन्द्र के विशाल व्यक्तित्व तथा व्यापक कर्तत्व पर गत सध्यायों में विशद् प्रकाश डाला गया है। उनके कुछ महत्वपूर्ण वैशिष्ट्य संक्षप में इस प्रकार हैं : प्रथम - प्राचार्य अमृतचन्द्र का समग्न व्यत्तित्य अध्यात्मनिष्ठ, निज शुद्धात्मामृत से परिपूर्ण तथा प्रलौकिक है। वे अपनी सहस्रवर्षीय पूर्वाचार्य परम्परा के उन्नायक बं सम्प्रसारक है । साथ ही अपनी सहस्रवर्षीय उत्तरवर्ती शिष्य परम्परा के प्रणेता एवं अध्यात्मधारा के प्रवाहक हैं। दूसरे - वे चिरस्थायी. परम हितकारी एवं परमानन्दामृत रस भरित साहित्य के असाधारण प्रणेता हैं । उनकी समस्त ऋतियां उनके बहुमुखी व्यक्तित्व की अमर म्मारक हैं । वे कृतियाँ मौलिक हों या भाष्यरूप, द्रव्यानयोग विषयक हों या चरणानुयोग सम्बन्धी, ज्ञानपरक हों या भक्तिपरक, दार्शनिक हों या धार्मिक - सभी में एक अद्वितीय अलोकिक अध्यात्मरस छलकता है । तीसरे - उन्होंने अपनी समस्त कृतियों के प्रारम्भ में अनेकांत अथवा स्याद्वाद की महिमा अवश्य प्रदर्शित की है। सर्वत्र ही उन्होंने प्रनकांतमयी बस्तूस्वरूप का निदर्शन स्याद्वादमयी निरूपण शैली में ही किया है। निश्चय-व्यवहार नय का समन्वित यथार्थ स्वरूप भी सुस्पष्ट किया है। ___ चौथे -- उन्होंने सभी टीकायें एवं मौलिक रचनायें अत्यंत पद्धता, समर्पणता तथा मग्नता के साथ की हैं। उनकी सभी टोकायें - "प्रथसूत्रावतार' शब्द से प्रारम्भ होती हैं और ग्रंथरचना के अहंकार के विकल्प
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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