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धार्मिक विचार !
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भाव को अंगीकार करके श्रात्म तत्त्व की प्राप्ति का मूल कारणरूप सामायिक बहुत बार करना चाहिए। सामायिक मुख्यतः रात्रि तथा दिन अंत में अवश्य करना चाहिए : अन्य किसी भी सामायिक करने में दोष नहीं है। सामायिक के समय चारित्रमोह के उदय होने पर भी समस्त पापों का त्याग होने से महाव्रत होता है । यह सामायिक नामक प्रथम शिक्षाबत
है ।
सामायिक की पुष्टि हेतु दोनों पक्षों की अष्टमी चतुर्दशी के दिन उपवास करना चाहिए। उपवास के लिए समस्त आरम्भ से मुक्त होकर, शरीरादि का ममत्व त्याग कर पर्व के पहले दिन में ही उपवास धारण करना चाहिए । पश्चात् संपूर्ण ४८ घंटे का काल धर्मध्यान में ही व्यतीत करना चाहिए । ' यह द्वितीय प्रवास नामक शिक्षाव्रत है | देशव्रती भावक भोगोपभोग से होने वाली हिंसा से बचने के लिए भोग तथा उपभोग की वस्तुनों में भी परिमाण कर लेता है, शेष का त्याग कर देता है । इसके अंतर्गत चनतकाय बाजे आदित्य बहुत ही बीदों की उत्पत्ति का स्थान मक्खन आदि का त्याग करना है । यह तीसरा भोगोपभोगपरिमाण नामक शिक्षावत है । गृहस्थ को विधिपूर्वक दातार के सप्तगुण तथा नवधाभक्ति युक्त अपने निमित्त से बनाये हुए शुद्ध भोजन का अंश अर्थात् ग्राहार दान करना चाहिए। दातार के ७ गुण इस प्रकार हैं - इस लोक संबंधी फल की इच्छा न करना सहनशील होना, निष्कपट होना, ईपरिहित होना, प्रत्रिभाव होना, हर्षनाव होना। नवधा भक्ति में पड़गाहन उच्चासन प्रदान, पादप्रक्षालन, पूजा करना, नमस्कार करना, मनशुद्धि, कायशुद्धि तथा भोजनशुद्धि ये नत्र बातें परिगणित हैं। श्रेष्ठ तप तथा स्वाध्याय की वृद्धि में सहायक द्रव्य ही दान करना चाहिए। दान के योग्य पात्र व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं। व्रतरहित सम्पादृष्टि देशव्रती श्रावक तथा सकलनती मुनि ये तीनों पात्र मोक्षमार्गी हैं। इस प्रकार यह यात्रत या अतिथि संविभाग व्रत नामक चौथा गुणव्रत है । इस प्रकार पाँच अबत और चार शिक्षात्रत ये १२ व्रत श्रावकों के धारण योग्य श्रावकाचार है | इनके धारण के पश्चात् मरण के समय सल्लेखना धारण करने का भी विधान है ।
१. पु.सि. १४८, १५४
२.
वहीं, १६१ से १७१
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